CG B.Ed Lecturers Demand: छत्तीसगढ़ में बीएड (B.Ed) डिग्रीधारी व्याख्याताओं को ही प्राचार्य (Principal) पद पर पदोन्नति देने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है।
बुधवार को डिवीजन बेंच (Division Bench) में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने जवाब प्रस्तुत करने के लिए और समय मांगा, जिस पर कोर्ट ने गुरुवार को पुनः सुनवाई करने का निर्णय लिया।
यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में समायोजन के बीच शिक्षकों के लिए अहम फैसला: HC ने टीचर सरोज सिंह के तबादले पर लगाई रोक, जानें पूरा मामला
जून तक लगी है प्रमोशन प्रक्रिया पर रोक
इस मामले में गर्मियों की छुट्टी से पहले अदालत ने 9 जून तक प्रमोशन प्रक्रिया (Promotion Process) पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद कई शिक्षकों को प्राचार्य पद पर ज्वाइनिंग (Principal Joining) दे दी गई, जिससे हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई।
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह न्यायालयीन अवमानना (Contempt of Court) का मामला बनता है और ज्वाइनिंग को निरस्त (Invalid) कर दिया गया है।
बार-बार दिए गए आश्वासन के बावजूद हुआ आदेश का उल्लंघन
28 मार्च 2025 को हुई पिछली सुनवाई में राज्य सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि अगली सुनवाई तक कोई प्रमोशन आदेश जारी नहीं किया जाएगा। मगर सरकार ने 30 अप्रैल को प्रमोशन लिस्ट जारी कर दी, जिसके अगले ही दिन 1 मई को हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।
इसके बाद भी कई जिलों में व्याख्याताओं को प्राचार्य पद पर तैनात कर दिया गया। बताया गया कि प्रमोशन आदेश में यह उल्लेख था कि यह कोर्ट के आदेश के अधीन रहेगा, फिर भी आदेश की अनदेखी करते हुए तैनाती दी गई।
कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना, DEO और व्याख्याताओं पर उठे सवाल
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने उन अधिकारियों की भी जानकारी दी जिन्होंने कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद प्रमोशन की प्रक्रिया पूरी की।
ज्वाइनिंग की पावती (Joining Acknowledgment) तक ले ली गई, जिससे DEO (District Education Officer) और कुछ व्याख्याताओं की मिलीभगत के आरोप सामने आए हैं। कोर्ट से ऐसे मामलों में निलंबन (Suspension) की मांग भी की गई है।
यह मामला क्यों है अहम?
इस प्रकरण का सीधा संबंध शिक्षा की गुणवत्ता (Quality of Education), योग्यता आधारित पदोन्नति (Merit-Based Promotion) और न्यायिक प्रक्रियाओं (Judicial Process) की मर्यादा से है। यदि बीएडधारी शिक्षकों को ही मौका दिया जाता है, तो इससे शिक्षण संस्थानों की नेतृत्व क्षमता में सुधार होगा।