MP Judge Removal Case: जबलपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली युगलपीठ ने कोर्ट रूम में पुलिस कर्मियों और वकीलों को कान पकड़कर उठक-बैठक कराने के आरोपित सिविल जज कौस्तुभ खेड़ा की बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा
हाईकोर्ट ने खेड़ा की बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका निरस्त करते हुए आदेश में साफ किया कि बर्खास्तगी अनुशासनात्मक कार्रवाई के आधार पर नहीं, बल्कि परिवीक्षा के दौरान असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर की गई थी। उन पर सिविल मामलों के निपटारे में आलस्य बरतने का आरोप लगा था।
कोर्ट ने कहा कि कदाचार के लिए दंडात्मक कार्रवाई करना एक बात है, और परिवीक्षा अवधि के दौरान प्रदर्शन के आधार पर यह संतुष्टि प्राप्त करना कि अधिकारी उपयुक्त अधिकारी बनेगा या नहीं, एक पूरी तरह से अलग बात है। दोनों के बीच बहुत अंतर है, और वर्तमान मामले में, यह उपरोक्त आदेशों और प्रस्तावों से विधिवत स्थापित होता है कि याचिकाकर्ता को बिल्कुल भी दंडित नहीं किया गया है और न ही निर्वहन आदेश, किसी भी दृष्टिकोण से, दंडात्मक प्रकृति का है।
तीन स्तरीय प्रक्रिया अपनाई गई
दरअसल, खेड़ा को 2019 में न्यायिक अधिकारी नियुक्त किया गया था और आठ अगस्त, 2024 को हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति की अनुंशसा और 20 अगस्त, 2024 को फुल कोर्ट द्वारा अनुसमर्थन के बाद मध्य प्रदेश शासन द्वारा पांच सितंबर, 2024 को सेवा से मुक्त कर दिया गया था।
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भिंड में पत्रकारों से पुलिस की बर्बरता का मामला: प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने की DGP से निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई की मांग
MP Police vs Bhind Journalists: मध्यप्रदेश के भिंड में एसपी असीत यादव की मौजूदगी में पत्रकारों के साथ की गई बर्बरता की प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन विमेन प्रेस कॉप्से और दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने कड़ी निंदा की है और मप्र के डीजीपी कैलाश मकवाना से मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है। साथ ही पत्रकारों को प्रताड़ित करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। इन जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने कहा, हम उन पुलिस अफसरों को याद दिलाना चाहते हैं कि भ्रष्टाचार और अवैध कार्यों के खिलाफ रिपोर्ट करना कोई अपराध नहीं बल्कि पत्रकारों कर कर्तव्य है। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…