MP High Court decision: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने वक्फ बोर्ड की कृषि भूमि लीज नीलामी को वैध ठहराते हुए संबंधित जनहित याचिका खारिज कर दी। अदालत ने वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 23 के तहत मुख्य कार्यपालन अधिकारी की नियुक्ति को भी सही माना। यह याचिका कृषि भूमि लीज नीलामी रोकने के लिए अमीर आजाद अंसारी ने दायर की थी।
वक्फ बोर्ड की कृषि भूमि लीज नीलामी वैध
जबलपुर हाईकोर्ट ने वक्फ बोर्ड की कृषि भूमि लीज नीलामी को वैध ठहराते हुए संबंधित जनहित याचिका खारिज कर दी। याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. फरजाना गजाल की नियुक्ति वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 23 के तहत नहीं की गई है। अदालत ने इस दावे को निराधार मानते हुए कहा कि डॉ. गजाल की नियुक्ति अस्थाई रूप से की गई है, जो कि कानून के अनुरूप है।
याचिका निराधार और अस्वीकार्य, खारिज
जबलपुर हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति विवेक की डबल बेंच ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में वक्फ कृषि भूमि की लीज नीलामी को लेकर दायर जनहित याचिका को “निराधार और अस्वीकार्य” ठहराते हुए खारिज किया। यह याचिका अमीर आजाद अंसारी और अन्य लोगों के द्वारा दायर की गई थी।
याचिका में उठाई गई थीं दो मुख्य आपत्तियां
पहली, कि वक्फ बोर्ड के आदेश पर हस्ताक्षर करने वाली मुख्य कार्यपालन अधिकारी डॉ. फरजाना गजाल पूर्णकालिक सीईओ नहीं हैं, जो कि वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 23 के खिलाफ है। दूसरी, कि 1994 के एक पुराने परिपत्र के अनुसार वक्फ संपत्ति की नीलामी केवल मुतवल्ली द्वारा की जा सकती है, बोर्ड द्वारा नहीं।
डॉ. गजाल की नियुक्ति को कोर्ट ने बताया वैध
अदालत ने इन दोनों दलीलों को पूर्णतः निराधार मानते हुए कहा कि वैसे तो याचिकाकर्ता के वकील ने अस्थाई शब्द से खेलने की कोशिश की मगर अस्थाई यानी temprery या for the time being ko सही संदर्भ में पढ़ा जाए तो डॉ. फरजाना गजाल वक्फ अधिनियम की धारा 23 के प्रावधानों अनुसार एक मुस्लिम महिला, उप सचिव स्तर से उच्च स्तर की अधिकारी हैं, और इनकी सेवाएं उच्च शिक्षा विभाग से पिछड़ा वर्ग तथा अल्प संख्यक कल्याण विभाग में तीन वर्षों के लिए तीन डिपुटेशन पर ली गई हैं, फिर सरकार ने उन्हें वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी का उत्तरदायित्व सौंपा है। उनके नियुक्ति आदेश में अस्थाई शब्द सीमित अवधि तीन वर्षों के के संदर्भ में उपयोग किया गया है, इससे अधिनियम के प्रावधान का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है। अतः उन्हें पूर्णकालिक सीईओ न मानने का कोई आधार नहीं है।
1994 के परिपत्र को अदालत ने किया अस्वीकार
अदालत ने इस दावे को भी खारिज करते हुए दो टूक कहा कि 1994 का परिपत्र अब मान्य नहीं है, क्योंकि उसे 2014 के वक्फ संपत्ति लीज नियमों ने प्रतिस्थापित कर दिया है। इन नियमों के अनुसार वक्फ संपत्तियां अब बोर्ड अथवा मुतवल्ली, दोनों द्वारा लीज पर दी जा सकती हैं। इसके साथ ही अदालत ने वक्फ बोर्ड की लीज नीलामी को कानूनी मंजूरी दी।
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बेबुनियाद जनहित याचिका पर करारा प्रहार
- यह फैसला न केवल एक बेबुनियाद जनहित याचिका पर न्यायालय का करारा प्रहार है, बल्कि यह वक्फ बोर्ड के कार्यों की वैधता को भी सशक्त करता है। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि इस प्रकार की याचिकाओं से न्यायालय का कीमती समय बर्बाद होता है।
- न्यायपालिका ने एक बार फिर दिखाया है कि सही संदर्भ में कानून की व्याख्या तथ्यों और समयानुकूल नियमों के आधार पर ही की जाएगी। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हो गया है कि अब तथ्यों से परे जाकर, तथ्यों को छुपा कर केवल गुमराह कर और कानून की गलत व्याख्या कर कोर्ट को गुमराह करने की कोशिशें सफल नहीं होगी।
एमपी राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष बोले…
कोर्ट के फैसले पर मध्य प्रदेश राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सनवर पटेल ने कहा कि इस याचिका के खारिज होने से वक्फ बोर्ड के कामों को प्रमाणिकता मिली हैं। हम अदालत की दृढ़ता को सलाम करते है। यह आदेश इस बात का भी सशक्त उदाहरण है कि कैसे न्यायपालिका जनहित के नाम पर दायर दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं से, नियमानुसार और कानून के मुताबिक संस्थाओं को संचालित करने वाले जनसेवकों की रक्षा करती है।
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