MP High Court: मध्यप्रदेश को जबलपुर हाईकोर्ट ने पन्ना में पदस्थ रहे रिटायर्ड न्यायिक अधिकारी मनोज सोनी के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म और दहेज मांग की FIR को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता महिला के साथ आवेदक ने सहमति से संबंध बनाए थे, ऐसे में यह दुष्कर्म का मामला नहीं बनता। साथ ही शादी से इनकार को दहेज मांग से जोड़ना भी उचित नहीं माना गया।
शिकायतकर्ता महिला ने लगाया था मनगढ़ंत आरोप
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने इस मामले में बेहद सटीक टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल शादी से इनकार करने को लेकर लगाए गए आरोप विश्वसनीय नहीं हैं। शिकायतकर्ता महिला के पास न तो दहेज मांग के प्रमाण हैं और न ही जबरन संबंध बनाने के ठोस सबूत। ऐसे में यह मामला केवल आवेदक को मानसिक और सामाजिक रूप से परेशान करने के लिए दर्ज किया गया प्रतीत होता है।
सुनवाई के दौरान खुली सच्चाई
वरिष्ठ अधिवक्ता शशांक शेखर, भूपेश तिवारी और समरेश कटारे ने मनोज सोनी की ओर से कोर्ट में पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि 2015 में शादी का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन बाद में जब याचिकाकर्ता को यह पता चला कि महिला के खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित है, तो उसने विवाह से इनकार कर दिया। इस इनकार के बाद महिला ने झूठे आरोप लगाकर बदनाम करने की कोशिश की।
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न्यायपालिका में विश्वास का प्रतीक बना यह फैसला
कोर्ट (MP High Court) ने इस प्रकरण में निष्पक्षता और तथ्यों के आधार पर निर्णय देकर न्यायिक व्यवस्था में आम जन का विश्वास और मजबूत किया है। पन्ना के अजयगढ़ थाने में दर्ज इस मामले को कोर्ट ने पूरी तरह से रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती।