CG Mandip Khol Gufa: छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ क्षेत्र में मंडीपखोल गुफा, जिसे एशिया (CG Mandip Khol Gufa) की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफा माना जाता है, इस साल 5 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोली जाएगी। यह गुफा हर साल अक्षय तृतीया के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार को एक दिन के लिए खोली जाती है। यहां भगवान शिव के एक अत्यंत दुर्लभ स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है।
गुफा तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को श्वेतगंगा जलधारा, जिसे पायथन गुफा भी कहा जाता है, को 16 से 17 बार पार करना पड़ता है। यह यात्रा कठिन होती है, लेकिन श्रद्धालु बड़ी आस्था के साथ यहां तक पहुंचते हैं। परंपरा के अनुसार, ठाकुरटोला के जमींदार परिवार द्वारा सबसे पहले पूजा की जाती है, इसके बाद हजारों की संख्या में श्रद्धालु दिनभर दर्शन करते हैं।
प्रशासन तैयार, सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता
खैरागढ़ कलेक्टर इंद्रजीत चंद्रवाल ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस बार भी हजारों श्रद्धालुओं (CG Mandip Khol Gufa) के आगमन की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था की पूरी तैयारी कर ली है। पुलिस बल की तैनाती और स्वास्थ्य सुविधाओं की भी व्यवस्था की गई है।
गुफा की बनावट और वैज्ञानिक महत्व
मैकल पर्वतमाला और घने जंगलों के बीच स्थित यह गुफा (CG Mandip Khol Gufa) एक दो-स्तरीय भूगर्भीय संरचना है, जिसका निर्माण प्री-कैम्ब्रियन युग में हुआ माना जाता है। नेशनल केव रिसर्च एंड प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन और इटालियन केव रिसर्च ग्रुप ने यहां विस्तृत अध्ययन किया है, जिसके अनुसार गुफा में पाई जाती हैं-
पूंछ वाले चमगादड़
ब्लैंडफोर्ड रॉक अगामा (छिपकली)
विभिन्न प्रजातियों की मकड़ियाँ
पिल बग और मेंढक
ये जीव अंधेरे में रहने वाली विशिष्ट खाद्य श्रृंखला का हिस्सा हैं, जो गुफा के भीतर जीवन को संतुलित रखते हैं।
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एक दिन की परंपरा का वैज्ञानिक कारण
विशेषज्ञों के अनुसार जब गुफा में बड़ी संख्या में लोग प्रवेश (CG Mandip Khol Gufa) करते हैं तो वहां का तापमान बढ़ जाता है, जिससे कई जीव अस्थायी रूप से भाग जाते हैं। इसी कारण वर्ष में केवल एक दिन गुफा खोलने की परंपरा स्थापित की गई है, ताकि उसका प्राकृतिक इकोसिस्टम सुरक्षित रह सके।
जलधारा और पर्यावरणीय चिंता
गर्मियों में आसपास के ग्रामीण केसरिया टोमेंटोसा नामक फल का उपयोग मछली पकड़ने के लिए करते हैं, जो गुफा की जलधारा और जलीय जीवन के लिए संभावित खतरा बन सकता है। पर्यावरणविदों ने इस पर चिंता जताई है और संरक्षण के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता बताई है।
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