हाइलाइट्स
- हाईकोर्ट का तर्क ये एक विशेष मामले का फैसला
- पत्नी करा चुकी पति पर विभिन्न धारा में एफआईआर
- निचली अदालत ने भी पत्नी के आरोप नहीं माने
MP High Court: हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध (Unnatural sexual relations) बनाने के आरोप से एक पति को बरी कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले में दो महत्वपूर्ण बिंदु उभर कर सामने आए हैं। हाईकोर्ट ने टिप्पणी में कहा हैं भारत में वैवाहिक बलात्कार को मान्यता नहीं है।
ये एक विशेष मामलों का फैसला
रिपोर्ट में कोर्ट (MP High Court) ने वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अभी तक कानूनी मान्यता नहीं मिलने की बात कही है। कोर्ट का कहना हैं कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। जिस पर भारत में लगातार बहस हो रही है। यह फैसला भारतीय कानून (Indian law) में सहमति और अप्राकृतिक यौन संबंधों की परिभाषा को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह एक विशेष मामले का फैसला है।
सहमति से सेक्स IPC में नहीं
कोर्ट ने कहा कि यदि एक पत्नी वैध विवाह के दौरान अपने पति के साथ रह रही है तो किसी पुरुष द्वारा पंद्रह वर्ष से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ कोई भी सेक्स बलात्कार नहीं होगा। यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के दायरे में नहीं आता। यह धारा, जो पहले समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था।
दहेज प्रताड़ना का भी था आरोप
याचिकाकर्ता पत्नी का आरोप है कि उसके साथ पति ने क्रूरता की। दहेज की मांग की। अप्राकृतिक सेक्स किया। इस प्रकार IPC की धारा 498-ए (क्रूरता), 377 (अप्राकृतिक अपराध), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड), 294 (अश्लील कृत्य) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के साथ धारा 34 (सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य) और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 (दहेज देने या लेने के लिए दंड) के साथ धारा 4 (दहेज मांगने के लिए दंड) के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए एक FIR दर्ज की गई।
जिला कोर्ट ने भी कर दिया बरी
3 फरवरी 2024 को इंदौर की एक अतिरिक्त सत्र की अदालत ने अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक सेक्स के आरोप से बरी किया था। यह आरोप भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) के तहत लगाया गया था। याचिकाकर्ता महिला के वकील की ओर से कहा गया कि पर्याप्त साक्ष्य के बावजूद पति को आरोप से मुक्त कर दिया, जो कानून की दृष्टि से गलत है।