हाइलाइट्स
- 6-6 साल की उम्र पूरी कर चुके चीता प्रभास और पावक
- चीतों के लिए अभयारण्य में 8900 हेक्टेयर का क्षेत्र तैयार
- अभयारण्य में 8 से 10 चीतों को बसाने की व्यवस्था
Cheetah Project GandhiSagar Sanctuary: एमपी में चीता प्रोजेक्ट (Cheetah Project) के दूसरे चरण के तहत 20 अप्रैल, रविवार को मंदसौर (Mandsour) जिले के गांधी सागर अभयारण्य में दो नर चीते पावक और प्रभास को छोड़ा गया। करीब 100 साल बाद अब चीतों के कदम इस जंगल में पड़े हैं। गांधीसागर में देश में पहली बार इनकी शिफ्टिंग की गई है।
राजस्थान के कोटा, झालावाड़ से लाए चीते
रविवार सुबह करीब 8 बजे कूनो नेशनल पार्क से टीम चीते लेकर गांधी सागर के लिए रवाना हुई थी। जिन्हें राजस्थान के कोटा, झालावाड़ से गांधी सागर रूट से लाया गया। दोपहर करीब 4 बजे चीतो को गांधीसागर अभयारण्य के रामपुरा लाया गया। यहां इन्हें गेट नंबर 4 में 6 वर्ग किलो मीटर के बाड़े में छोड़ा गया है।
एसी वाहन से 8 किमी दूरी तय कर पहुंचे
दोनों चीते पावक और प्रभास को ट्रेंकुलाइजर कर पिंजरे में डाला गया था। एयर कंडिशनड वाहन से दोनों को अलग-अलग पिंजरे में लाए गए। ये वो पिंजरे हैं, जो दक्षिण अफ्रीका से चीतें लाने के लिए तैयार किए थे। इसके लिए 360 किलोमीटर की दूरी 8 घंटे में बिना रुके तय की गई।
एमपी में चीतों का ग्रोथ रेट सबसे अधिक
सीएम मोहन यादव ने कहा कि देश में कई जगह चीतों के पुर्नस्थापना का प्रयास किया, लेकिन उनका ग्रोथ रेट कम रहा या जीवीत ही नहीं रहे। पूरे एशिया में 1947 में आखिरी बार छत्तीगढ़ के कोरिया में आखिरी चीते के शिकार हुआ था। बाकी क्षेत्रों से इससे पहले ही चीता चले गए थे। एशिया के एमपी में 2022 में चीता प्रोजेक्ट शुरू किया गया। चीतों का सबसे ज्यादा ग्रोथ रेट मध्यप्रदेश में रहा है। एमपी में अब तक जितने चीते लाए, उसकी दूसरी पीढ़ी तैयार हो गई।
बोत्सवाना से लाए जाएंगे और 8 चीतें
दक्षिण अफ्रीका के बोत्सवाना से आठ चीतों को दो चरणों में मध्यप्रदेश लाया जाएगा। मई 2025 तक चार चीतों को भारत लाने की योजना है। इसके बाद चार और चीतों को लाया जाएगा। प्रोजेक्ट चीता के तहत इन चीतों को गांधी सागर अभयारण्य में चरणबद्ध तरीके से छोड़ा जाएगा।
90 चीता मित्र अभयारण्य में तैनात
16 किलोमीटर में एक परिक्षेत्र बनाया है। जहां चीतों को सुरक्षित रखा जाएगा। गांधी सागर अभयारण्य के रेंजर अंकित सोनी ने बताया- गांधी सागर अभयारण्य में कूनो सैंक्चुरी में प्रशिक्षित 90 चीता मित्र चीतों की देखरेख के लिए तैनात किए गए। वन विभाग ने पानी की विशेष व्यवस्था के लिए सैंक्चुरी एरिया में तालाब बनाए गए हैं।
41 साल का हुआ गांधीसागर अभयारण्य
गांधी सागर अभयारण्य अपना 41वां साल पूरा कर चुका है। साल 1984 में अभयारण्य को अधिसूचित किया गया था। यह क्षेत्र चतुर्भुजनाथ मंदिर, वन शैलचित्र स्थलों और कई दुर्लभ प्रजातियों का घर है। यहां सलाई, तेंदू, पलाश जैसे वृक्षों के साथ-साथ तेंदुआ, ऊदबिलाव और चिंकारा जैसे वन्यजीव भी पाए जाते हैं।
भोजन के लिए 300 से ज्यादा वन्य प्राणी
गांधी सागर अभयारण्य में चीतों के भोजन के लिए पहले से ही बड़ी तादाद में हिरण मौजूद हैं। इनके अलावा 150 से अधिक चीतल, 80 से अधिक चिंकारा, 50 से अधिक व्हाइट बोर्ड और 50 से अधिक नीलगाय हैं। यहां चीतों के लिए विशेष तौर पर तालाब भी तैयार किए गए हैं। जहां चीता अपनी प्यास बुझा पाएंगे।
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निगरानी के लिए बनेगा टास्क फोर्स
वन्य प्राणियों की पुनर्वास परियोजनाओं की देखरेख के लिए वन, पर्यटन, पशु चिकित्सा, पंचायत व ग्रामीण विकास, जनजातीय कार्य एवं परिवहन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का एक टास्क फोर्स बनाएंगे। यह टास्क फोर्स नियमित रूप से सभी चीता प्रोजेक्ट्स की निगरानी करेंगे।
किंग कोबरा, घड़ियाली होगे विस्थापित
किंग कोबरा, घड़ियाली और कछुओं को प्रदेश में संरक्षित किए जाने की योजना है। पहले चरण में 10 किंग कोबरा एमपी में लाने पर विचार किया जा रहा है। चंबल नदी से घड़ियाल और कछुओं को एमपी की 4 बड़ी नदियों और जलाशयों में पुर्नवासित किया जाएगा।
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