MP Jabalpur High Court: देशभर में जमानत की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। अब अग्रिम, अंतरिम या डिफॉल्ट जमानत की अर्जी दाखिल करने वाले मुजरिमों को अपने पुराने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी देना अनिवार्य होगा। यह नई व्यवस्था 1 मई 2025 से लागू की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसका स्पष्ट प्रारूप जारी कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आया बदलाव
यह फैसला मुन्नेश बनाम मध्य प्रदेश केस के आधार पर लिया गया है, जिसमें 3 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट की डिवीजन बेंच ने पाया कि आवेदक ने अपने खिलाफ दर्ज 8 आपराधिक मामलों की जानकारी कोर्ट से छुपाई थी। इस पर जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने निर्देश दिए कि अब हर जमानत अर्जी के साथ आपराधिक रिकॉर्ड देना जरूरी होगा।
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हाईकोर्ट ने जारी किया नया फॉर्मेट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत के निर्देश पर प्रिंसिपल रजिस्ट्रार संदीप शर्मा ने नया प्रारूप जारी किया है। इसके तहत जमानत मांगते समय आवेदक को नीचे दी गई जानकारी देनी होगी:
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FIR नंबर
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किन धाराओं में केस दर्ज है
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केस किस पुलिस स्टेशन में दर्ज है
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पुलिस स्टेशन किस जिले में स्थित है
इन जानकारियों के बिना अब जमानत की अर्जी स्वीकार नहीं की जाएगी।
अब खुद देना होगा आपराधिक रिकॉर्ड
अब तक जमानत के मामलों में सरकारी पक्ष (प्रॉसिक्यूशन) मुजरिम का रिकॉर्ड पेश करता था, लेकिन 1 मई से यह जिम्मेदारी खुद आरोपी या उसके वकील की होगी।
सीनियर एडवोकेट मनीष दत्त के अनुसार, यह नियम सीआरपीसी में 2008 के संशोधन के अनुरूप है, लेकिन अब इसका सख्ती से पालन होगा।
किन मामलों में देना होगा रिकॉर्ड?
यह जानकारी इन सभी मामलों में देना जरूरी होगी:
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SC/ST एक्ट की धारा 14 के तहत जमानत या राहत की अर्जी
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सजा का निलंबन या आपराधिक अपील
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व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी अन्य कानूनी मांगें
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की सभी बेंचों (जबलपुर, इंदौर, ग्वालियर) में 1 अक्टूबर 2017 से लंबित मामलों में भी यह जानकारी जरूरी होगी
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