हाइलाइट्स
- जालौन में डॉक्टर ने चार साल के बच्चे को पिलाया सिगरेट का कश।
- वीडियो वायरल होने के बाद परिजनों ने CMO से की शिकायत।
- डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के आदेश के पर डॉक्टर के खिलाफ FIR दर्ज।
Jalaun Child Smoke Cigarrete: उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में एक बेहद शर्मनाक और अमानवीय घटना सामने आई है। जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कुठौंद में कार्यरत डॉक्टर सुरेश चंद्रा का एक वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में डॉक्टर एक चार साल के मासूम बच्चे को सिगरेट का कश दिलाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
मामले ने तूल पकड़ा तो डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के आदेश के बाद डॉक्टर के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है।
जालौन के अपर पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार वर्मा ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मासूम के परिजनों ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) से शिकायत की थी। CMO डॉ. नरेंद्र देव शर्मा ने मामले की विभागीय जांच कराई, जिसमें वीडियो की पुष्टि हो गई और आरोप सही पाए गए।
इन धाराओं में दर्ज हुआ मामला
डॉक्टर सुरेश चंद्रा के खिलाफ बीएनएस की धारा 125,
सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (COTPA) 2003 की धारा 6/24,
और किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 77 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
छुट्टी लेकर डॉक्टर फरार
मामले के तूल पकड़ते ही डॉक्टर सुरेश चंद्रा छुट्टी लेकर लापता हो गए हैं। वहीं, जिस मासूम के साथ यह शर्मनाक हरकत हुई, वह और उसके परिजन भी अब अस्पताल में नहीं मिल रहे हैं। सीएमओ ने बताया कि यह घटना करीब 8 महीने पुरानी है, और डॉक्टर के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।
सरकार की सख्ती
डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए थे। उन्होंने साफ कहा था कि बच्चों के साथ इस तरह की अमानवीय हरकत किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सरकार की तरफ से यह संदेश भी स्पष्ट किया गया है कि स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत कोई भी कर्मचारी या डॉक्टर अगर बच्चों की सुरक्षा या स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता है, तो उस पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
डॉक्टर की गिरफ्तारी की मांग
घटना सामने आने के बाद आम जनता और स्थानीय नागरिकों में भारी रोष है। सोशल मीडिया पर लोग डॉक्टर की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं और यह सवाल भी उठा रहे हैं कि अगर कार्रवाई 8 महीने पहले ही हो जाती, तो ऐसे मामलों को रोका जा सकता था।
यह मामला एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपने बच्चों को एक सुरक्षित वातावरण दे पा रहे हैं, और क्या सरकारी अस्पतालों में तैनात जिम्मेदार अधिकारी वाकई अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं या नहीं।
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