रिपोर्ट, अंकित श्रीवास्तव, गोरखपुर
हाइलाइट्स
- एम्स में लगभग 30 विभागों की ओपीडी होती है
- जांचों और सर्जरी पर भारी वेटिंग लिस्ट
- दवाइयों की उपलब्धता बेहतर, लेकिन इलाज के लिए जूझते मरीज
AIIMS Gorakhpur Staff Shortage: पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल तक के मरीजों के लिए संजीवनी बने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) गोरखपुर पर हर दिन दबाव बढ़ता जा रहा है। गोरखपुर एम्स में लगभग 30 विभागों की ओपीडी होती है,करीब 4,000 मरीजों की ओपीडी, 6,000 से अधिक ब्लड टेस्ट,करीब 600 एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड,सिटी स्केन,एमआर आई भी होतीं है। इन सब जांचों को मिलाकर 30 से 80 की संख्या में जांचों के बीच अस्पताल अपनी सीमित क्षमताओं के बावजूद मरीजों की सेवा में जुटा है।
बढ़ते मरीज, सीमित संसाधन
गोरखपुर एम्स 750 बेड का अस्पताल है, लेकिन स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है। पैरामेडिकल स्टाफ में 50% की कमी, नर्सिंग स्टाफ में 20% की कमी, और डॉक्टरों के 183 स्वीकृत पदों में से केवल 115 पद भरे गए हैं। सबसे ज्यादा सीनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की कमी है, जहां 200 पदों में से सिर्फ 65 डॉक्टर तैनात हैं। जूनियर रेजिडेंट डॉक्टरों की स्थिति भी बेहतर नहीं है – 200 पदों में से केवल 120 पर नियुक्तियां हुई हैं।
जांचों और सर्जरी पर भारी वेटिंग लिस्ट
रोजाना हजारों जांचों के बीच तकनीकी स्टाफ की भारी कमी अस्पताल की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। लैब टेक्नीशियन, ओटी टेक्नीशियन, एक्स-रे टेक्नीशियन, एनेस्थीसिया टेक्नीशियन और रेडियोलॉजी टेक्नीशियन की भारी किल्लत के कारण जांचों में देरी हो रही है।गंभीर ऑपरेशन के लिए मरीजों को तीन महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है। गायनेकोलॉजी, ईएनटी और नेत्र रोग विभाग में डेढ़ महीने की वेटिंग, जबकि ऑर्थोपेडिक सर्जरी के लिए दो हफ्ते का इंतजार बना हुआ है।
दवाइयों की उपलब्धता बेहतर, लेकिन इलाज के लिए जूझते मरीज
गोरखपुर एम्स में अमृत फार्मेसी और प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर किफायती और उच्च गुणवत्ता वाली दवाइयां उपलब्ध हैं। मरीजों को इलाज के लिए दवा की दिक्कत नहीं हो रही, लेकिन डॉक्टरों की कमी और लंबी जांच प्रक्रियाएं उनके धैर्य की परीक्षा ले रही हैं।
बिहार-झारखंड और नेपाल से भी आते हैं मरीज, ठहरने की समस्या
गोरखपुर एम्स सिर्फ यूपी के मरीजों का ही नहीं, बल्कि बिहार, झारखंड और नेपाल तक के लोगों का इलाज का केंद्र बन चुका है। मरीजों को सुबह से लंबी लाइनों में खड़ा होना पड़ता है, एम्स परिसर में मरीज और मरीजों के तीमारदार फुटपाथ पर भी लेते हुए कई बार पाए जाते हैं.हालांकि एम्स के बाहर आस-पास के क्षेत्रों में होटल और धर्मशाला बने हुए हैं.कई दिन मरीज को रात में रुकना होता है वह एम्स में भर्ती कर दिए जाते हैं, इलाज के लिए भर्ती हुए मरीजों के तीमारदारों को अक्सर रातभर धर्मशालाओं और होटलों की भी शरण लेनी पड़ती है।
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सरकार और प्रशासन के सहयोग से एम्स गोरखपुर अपनी सेवाओं को सुचारू रूप से संचालित करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन डॉक्टरों और स्टाफ की नियुक्ति प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है। संसाधनों की भारी कमी के बावजूद, यह अस्पताल पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के मरीजों के लिए जीवनरेखा बना हुआ है।
क्या कहते हैं डाक्टर
गोरखपुर एम्स में तैनात डॉक्टर अजय भारती अर्थो के सीनियर डॉक्टर ने बताया कि 30 विभागों की ओपीडी संचालित होती है। इंफ्रास्ट्रक्चर पर बर्डन बहुत ज्यादा है लेकिन इस सबके बावजूद भी हम लोग किसी न किसी तरह से पेशेंट की सेवा में चीज सस्टेन किए हुए हैं और हम लोग प्रशासन और मंत्रालय की मदद से यह सारी चीज ढंग से एग्जीक्यूट कर पा रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर अजय भारती ने बताया कि एम्स में टेक्नीशियन की बात करें तो लेब टेक्निशियन, ओटी टेक्निशियन, एनेस्थीसिया टेक्निशियन, रेडियोलॉजी टेक्निशियन, फिजियोथैरेपी टेक्निशियन, मेडिकल फिजिसिस्ट, यह सारे पोस्ट की हमारे पास (गोरखपुर एम्स) में कमी है।
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