हाइलाइट्स
- नागरिकों को नमाज पढ़ने से रोका गया।
- मस्जिद 1918 वक्फ जमीन पर से है।
- धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन का लगाया आरोप।
Masjid Noor Prayer Restriction: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर की मशहूर मस्जिद नूर में आम मुस्लिम लोगों को नमाज़ पढ़ने से रोके जाने के मामले में रक्षा मंत्रालय से कड़ा सवाल पूछा है। कोर्ट ने पूछा है कि जब मंदिरों और चर्चों में आम जनता को पूजा-पाठ की इजाजत है, तो फिर मस्जिद में नमाज़ क्यों रोकी जा रही है।
कोर्ट का साफ सवाल- नमाज पर रोक क्यों?
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने कहा, ‘उत्तरदाता ये स्पष्ट करें कि अगर आम नागरिकों को मंदिर और चर्च में पूजा की अनुमति है, तो फिर मस्जिद नूर में नमाज पर रोक क्यों लगाई गई है? ये मस्जिद CDA (कंट्रोलर ऑफ डिफेंस अकाउंट), रिड्ज रोड, जबलपुर की रक्षा भूमि के पीछे स्थित है।’
1918 से हो रही इबादत, फिर अब क्यों रोका?
इस जनहित याचिका को मस्जिद नूर प्रबंधन समिति के सचिव के ज़रिए दाखिल किया गया है। याचिका में बताया गया कि स्टेशन कमांडर (उत्तरदाता नंबर 4) ने याचिकाकर्ता और अन्य मुस्लिम नागरिकों को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से मना कर दिया।
याचिका में कहा गया कि मस्जिद नूर 1918 से आम नागरिकों और सेना के जवानों द्वारा नमाज़ के लिए इस्तेमाल की जा रही है। यह मस्जिद वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 3 के तहत ‘वक्फ बाय यूज’ के रूप में मान्य है।
धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन?
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि अब तक कभी भी किसी अधिकारी ने नमाज पर रोक नहीं लगाई थी, लेकिन हाल ही में स्टेशन कमांडर द्वारा मौखिक रूप से इबादत पर पाबंदी लगा दी गई, जो कि धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
शिकायत की गई, पर सुनवाई नहीं
मामले में शिकायत मध्य भारत क्षेत्र के जनरल ऑफिसर कमांडिंग और डिफेंस एस्टेट ऑफिसर को भी दी गई। लेकिन जब याचिकाकर्ता स्टेशन कमांडर के ऑफिस में प्रतिलिपि देने गए तो उन्होंने उसे लेने से इनकार कर दिया।
अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद
कोर्ट ने मामले को दो सप्ताह बाद की तारीख के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। अब सबकी निगाहें रक्षा मंत्रालय के जवाब और कोर्ट के अगले कदम पर टिकी हैं।
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