हाइलाइट्स
- भारतीय परिवार व्यवस्था संकट में है
- भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली के कमजोर
- संपत्ति विवाद और विरासत की लड़ाई में बढ़ोतरी
One Person One Family: ‘ सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पारिवारिक विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ‘परिवार’ की अवधारणा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है और समाज ‘एक व्यक्ति, एक परिवार’ की ओर बढ़ रहा है। न्यायालय ने यह टिप्पणी एक बुजुर्ग मां द्वारा अपने बेटे को बेदखल करने की याचिका को खारिज करते हुए की।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “भारत में हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में विश्वास करते हैं, जिसका अर्थ है कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है। हालांकि, दुर्भाग्यवश, आज हम अपने ही परिवार में एकता बनाए रखने में असमर्थ होते जा रहे हैं। ‘परिवार’ की अवधारणा खत्म होती जा रही है और हम एक व्यक्ति, एक परिवार की स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं।”
क्या है मामला
मामला उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर का है, जहां समतोला देवी नामक महिला और उनके दिवंगत पति कल्लू मल के पास तीन दुकानों वाला एक घर था। उनके तीन बेटे और दो बेटियां थीं। समय के साथ, माता-पिता और विशेष रूप से उनके बेटे कृष्ण कुमार के बीच संपत्ति को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
₹8,000 प्रति माह का भुगतान करने का आदेश
2014 में, कल्लू मल ने कृष्ण कुमार पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया और उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) से उचित कार्रवाई की मांग की। 2017 में, माता-पिता ने भरण-पोषण की मांग की, जिसे पारिवारिक न्यायालय ने स्वीकार करते हुए दो बेटों – कृष्ण कुमार और जनार्दन – को ₹8,000 प्रति माह का भुगतान करने का आदेश दिया।
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2019 में, कल्लू मल और उनकी पत्नी ने ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम’ के तहत कृष्ण कुमार को बेदखल करने के लिए याचिका दायर की। प्रारंभ में, भरण-पोषण न्यायाधिकरण ने उन्हें अपने माता-पिता की अनुमति के बिना घर पर कब्जा न करने का निर्देश दिया, लेकिन बेदखली का आदेश नहीं दिया।
न्यायालय का फैसला
मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां देवी ने तर्क दिया कि घर उनके दिवंगत पति की स्व-अर्जित संपत्ति थी और कृष्ण कुमार को वहां रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है जो उन्हें संपत्ति से किसी को बेदखल करने की अनुमति देता हो। अदालत ने यह भी कहा कि यदि विवादित संपत्ति कल्लू मल की स्व-अर्जित थी और उन्होंने इसे अपनी बेटियों और दामाद को हस्तांतरित कर दिया, तो अब उनके पास इसे लेकर कोई स्वामित्व अधिकार नहीं बचा। ऐसे में, उनकी पत्नी भी किसी को बेदखल करने का दावा नहीं कर सकतीं।
रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है -एडवोकेट- दिल्ली हाईकोर्ट
वहीं इस मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट के वकील विनोद कुमार दुबे ने जानकारी देकर कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह साबित हो कि कृष्ण कुमार ने अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार किया या उन्हें अपमानित किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल अनुचित व्यवहार या प्रताड़ना की स्थिति में ही किसी को बेदखल करने की कार्यवाही की जा सकती है।