रिपोर्ट: लक्ष्मण महंत, कोरबा
Holi Mysterious Story: कोरबा जिले में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग होली के रंगों से डरते हैं। होलिका दहन को लेकर यहां दहशत का माहौल रहता है। करीब 150 साल से इस गांव में होली नहीं मनाई गई है। ग्रामीणों के मन में एक अदृश्य शक्ति का भय बसा हुआ है। उन्हें डर है कि अगर होली मनाई गई तो गांव में कोई बड़ी आपदा आ सकती है।
यह नजारा कोरबा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित खरहरी गांव (Holi Mysterious Story) का है। जहां पूरे देश में होली के त्योहार को लेकर उत्साह होता है, वहीं इस गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। ग्रामीण आज भी उस अंधविश्वास (Holi Mysterious Story) से जुड़े नियमों का पालन कर रहे हैं, जो उन्हें विरासत में मिले हैं। हैरानी की बात यह है कि गांव की साक्षरता दर 76% है, फिर भी यहां के लोग बुजुर्गों की बातों का आंख मूंदकर पालन करते आ रहे हैं।
150 साल पुरानी घटना का आज भी असर

गांव के बैगा टिकैत राम और ग्रामीण समारिन बाई बताती हैं कि गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जन्म से बहुत पहले ही इस गांव में होली न मनाने की परंपरा (Holi Mysterious Story) शुरू हो गई थी। करीब 150 साल पहले जब बाहरी लोगों ने गांव में होलिका दहन किया था, तो गांव में अंगारे बरसने लगे। घरों में आग लग गई और जब रंग उड़ाए गए तो गांव में महामारी फैल गई। इस घटना में कई लोगों की जान चली गई। उसी दिन से बुजुर्गों ने गांव में होली खेलने पर पाबंदी लगा दी। आज भी बड़े ही नहीं, बल्कि बच्चे भी होली खेलने से परहेज करते हैं।
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पूर्वजों की परंपरा का पालन कर रहे युवा

गांव निवासी 11वीं कक्षा के छात्र नमन चौहान बताते हैं कि वे पढ़े-लिखे हैं, लेकिन फिर भी अपने पूर्वजों की परंपरा (Holi Mysterious Story) का पालन कर रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर वे गांव में होली खेलेंगे तो किसी तरह का नुकसान हो सकता है। होली न मनाने के पीछे एक और मान्यता है। कहा जाता है कि देवी मड़वारानी ने सपने में आकर ग्रामीणों से कहा था कि गांव में न तो कभी होली का त्योहार मनाया जाए और न ही होलिका दहन किया जाए। अगर कोई ऐसा करता है तो बड़ा अपशगुन होगा।
आधुनिकता और परंपरा के बीच संघर्ष
मान्यता चाहे जो भी हो, लेकिन बुजुर्गों द्वारा बनाए गए इस नियम के कारण आज की पीढ़ी (Holi Mysterious Story) भी काफी प्रभावित हैं। गांव के युवा भले ही शिक्षित हों, लेकिन वे अपनी परंपराओं और मान्यताओं को तोड़ने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। इस तरह, खरहरी गांव आज भी होली के रंगों से दूर है और अपनी अनूठी परंपरा को संजोए हुए हैं।
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