Uttrakhand Highcourt on UCC Rules: एक याचिका के सुनवाई के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीश जी. नरेंद्र ने सवाल उठाते हुए कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को रेगुलेट (नियमित) करने में क्या गलत है, खासकर जब ऐसे संबंधों से जन्मे बच्चों की पहचान और सुरक्षा का सवाल से जुड़ा हो। दरअसल यह मामला उत्तराखंड के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) 2024 की उन धाराओं से जुड़ा है, जो लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करने और कुछ खास रिश्तों में शादी को अवैध ठहराने से संबंधित हैं।
मामला क्या है?
उत्तराखंड सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) 2024 लागू किया है, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कुछ नए नियम बनाए गए हैं। इन नियमों के तहत, अगर कोई जोड़ा लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहता है, तो उन्हें सरकार के पास अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो तीन महीने की जेल या ₹10,000 का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
इस कानून को अलमासुद्दीन सिद्दीकी नाम के व्यक्ति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह कानून निजी जीवन में दखलंदाजी करता है और यह कुछ खास रिश्तों में शादी को भी अवैध ठहराता है, जिससे लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
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हाईकोर्ट का सवाल
जब इस मामले की सुनवाई हुई, तो उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र ने पूछा कि अगर लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित किया जाता है, तो इसमें क्या गलत है? उन्होंने तर्क दिया कि अगर लिव-इन रिलेशनशिप से कोई बच्चा जन्म लेता है, तो उसकी पहचान और अधिकारों का क्या होगा?,
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि शादी में तो यह स्पष्ट होता है कि बच्चे का पिता कौन है, लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में ऐसा नहीं होता। अगर यह रिश्ता टूट जाता है, तो बच्चे और महिला को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, अगर लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्टर किया जाए, तो इससे कानूनी सुरक्षा मिलेगी।
सरकार का पक्ष
उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि इस कानून की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कई महिलाएं लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद बेसहारा हो जाती हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार ने इस पर एक अध्ययन किया है, जिसमें पता चला कि कई महिलाओं को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद बिना किसी कानूनी अधिकार के छोड़ दिया जाता है।सरकार का कहना था कि इस कानून का उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा देना है, न कि उनकी स्वतंत्रता छीनना।
मुख्य न्यायाधीश का जवाब
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को पहले से ही “घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून के तहत मान्यता प्राप्त है।लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि यह समस्या सिर्फ महिलाओं की ही नहीं, बल्कि बच्चे के पितृत्व (पिता की पहचान) को साबित करने की भी है।
याचिकाकर्ता ने क्या कहा
याचिकाकर्ता (सिद्दीकी) ने यह भी दलील दी कि इस कानून में कुछ रिश्तों में शादी करने पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिससे उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो रहा है।
इस पर सरकार का जवाब था कि यह प्रतिबंध पहले से ही हिंदू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट और क्रिश्चियन मैरिज एक्ट में लागू हैं। इसलिए, यह कोई नया नियम नहीं है।
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