MP Banned Cough Syrup Selling: मध्य प्रदेश में प्रतिबंध के बाबजूद बैन कफ सीरप की ब्रिक्री हो रही है जिसको लेकर हाई कोर्ट में आज सुनवाई हुई। जबलपुर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने प्रतिबंधित कफ सीरप बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इस मामले में कार्रवाई की जिम्मेदारी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और पुलिस को सौंपी गई है। मामले की अगली सुनवाई 13 फरवरी को होगी।
जनहित याचिका में कंपनियों पर लगे ये गंभीर आरोप
जबलपुर निवासी अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने जनहित याचिका के माध्यम से इस मामले को हाई कोर्ट के समक्ष रखा। उन्होंने अपनी दलीलों में कहा कि प्रतिबंध के बावजूद क्लोरफेनिरामाइन और कोडीन युक्त कफ सीरप का उत्पादन और बिक्री बड़े पैमाने पर हो रही है। इनका उपयोग नशे के कारोबार में किया जा रहा है। जिससे यह मानव और पशुओं दोनों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है।
केन्द्र सरकार ने लगाया था पूर्ण प्रतिबंध
याचिकाकर्ता ने बताया कि केन्द्र सरकार ने 2 जून, 2023 को एक अधिसूचना जारी कर क्लोरफेनिरामाइन और कोडीन के संयुक्त डोज वाले कफ सीरप के उत्पादन, वितरण और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बावजूद कुछ कंपनियां कानून की परवाह किए बिना इन कफ सीरप का न सिर्फ प्रोडक्शन कर रही हैं। बल्कि बड़ी मात्रा में बेच भी रही हैं। अधिवक्ता गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि प्रतिबंध के बाद से अब तक 40 से अधिक एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि इनका उत्पादन अभी भी जारी है।
जवाबदेही पर सवाल
अधिवक्ता गुप्ता ने अपनी याचिका में यह भी तर्क दिया कि जिन अधिकारियों पर इन गतिविधियों पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी है वे इसे ठीक से निभा नहीं पा रहे। ड्रग कंट्रोलर और ड्रग इंस्पेक्टर अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल हो रहे हैं। उन्होंने कोर्ट से मांग की कि प्रतिबंध का 100 प्रतिशत पालन सुनिश्चित किया जाए और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए।
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कोर्ट का सख्त रुख
हाई कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और पुलिस को निर्देश दिए हैं कि वे तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित करें। कोर्ट ने इस मामले में शामिल अधिकारियों को जवाबदेही तय करने और सख्त कदम उठाने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, और राज्य के खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारी स्थिति को सुधारने के लिए त्वरित कार्रवाई करें। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि कानून के उल्लंघन की स्थिति बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
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