रिपोर्ट: रजत वाजपेयी, जगदलपुर
Sukma Ramaram Mela 2025: छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में स्थित रामाराम भगवान राम से जुड़ा एक बेहतरीन पर्यटन स्थल है। मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान राम सुकमा (Sukma Ramaram Mela 2025) के रामाराम पहुंचे थे। यहां उन्होंने भू-देवी की पूजा की थी। गांव में श्रीराम की कई निशानियां मिलती हैं। इस गांव में वर्षों पुराना मंदिर है। शोधकर्ताओं के अनुसार दक्षिण गमन के दौरान प्रभु श्री राम सुकमा जिले के रामराम पहुंचे थे।
वर्तमान में यहां एक मंदिर है, जो सुकमा (Sukma Ramaram Mela 2025) सहित ओड़िशा और तेलंगाना के लोगों के लिए भी आस्था का केंद्र है। मां रामरामिन चिटमिट्टीन अम्मा देवी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को भरोसा है कि मां न केवल उनकी मनोकामना पूर्ण करेंगी, बल्कि उनके सुख और समृध्दि का भी ख्याल रखती है।
रामारामिन के नाम से प्रसिद्ध देवी मंदिर
1834 में भूदेवी की जगह पर रामारामिन चिटमिट्टीन अम्मा देवी मंदिर की स्थापना सुकमा के तत्कालीन शासक रामराज देव ने की थी। रामाराम (Sukma Ramaram Mela 2025) के पास होने के कारण ये मंदिर देवी रामारामिन के नाम से प्रसिद्ध है। यह प्राचीन मंदिर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। रामाराम सुकमा जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है। रामाराम में चिटमिट्टीन अम्मा देवी का प्राचीन मंदिर है। इस क्षेत्र के लोगों में देवी के प्रति गहरी आस्था होने के कारण रामाराम सुकमा जिले के लोगों के लिए एक तीर्थ स्थल की तरह है।
रामाराम मेले का इतिहास 600 साल पुराना
रामाराम मेले (Sukma Ramaram Mela 2025) का इतिहास 600 साल से भी अधिक पुराना है। प्रचलित कथाओं के मुताबिक यहां पर भगवान श्रीराम ने भू-देवी की पूजा-अर्चना की थी, जिसके बाद यहां का नाम रामाराम पड़ा। क्षेत्र के लोगों में देवी के प्रति आस्था होने के कारण रामाराम सुकमा का एक बेहद महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।
श्रीराम संस्कृतिक शोध संस्थान न्यास नई दिल्ली ने श्रीराम वनगमन स्थल के रूप में रामराम को सालों पहले चिन्हित कर लिया था। अब छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वनगमन परिपथ के रूप में इस जगह को विकसित किया जा रहा है। इसके अंतर्गत यहां जामवंत गुफा बनाई जा रही है, जो मंदिर से 600 मीटर की दूरी पर है।
1956 में बनी थी तहसील, 1960 में हुआ गठन
सुकमा (Sukma Ramaram Mela 2025) जिला बस्तर का दक्षिणी भाग है, जो वर्ष 2012 में 16 जनवरी को अस्तित्व में आया था। यह 1952 से बस्तर के अंतर्गत उप तहसील था और 1956 में तहसील में अपग्रेड किया गया, इसके बाद 1960 में कोंटा तहसील का गठन किया गया। राम वनगमन पथ के तहत रामाराम को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए रॉक गार्डन बनाया गया है, जो पूरे प्रदेश भर का पहला रॉक गार्डन है।
यहां भगवान राम के जीवन को प्रदर्शित किया गया है। रॉक गार्डन में गुफा आकर्षण का केंद्र है, जहां भगवान राम (Sukma Ramaram Mela 2025) की जीवनी को तस्वीरों में प्रदर्शित किया गया है, जिसकी जमकर तारीफ हो रही है। नैसर्गिक पेड़-पौधों के बीच रॉक गार्डन का निर्माण किया गया है। इस वजह से यहां प्राकृतिक सौंदर्य की अलग छठा बिखरी है। इसके अलावा गार्डन के अंदर मानव मुद्रा को प्रदर्शित करती चट्टानों से बनी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं, जो मनुष्य की अभिव्यक्तियों को दर्शाता है। एक प्रभावशाली प्रवेश द्वार बनाने के लिए 2 हाथियों की मूर्तियां रखी गईं हैं।
रामाराम में हर साल लगता है मेला
रामाराम (Sukma Ramaram Mela 2025) में हर साल फरवरी में मेला लगता है। इस मेले में माता रामारामिन की डोली राजबाड़ा से निकलती है और नगर में जगह-जगह इसकी पूजा की जाती है। बस्तर के इतिहास के अनुसार 608 सालों से यहां मेला आयोजन होता आ रहा है। सुकमा जमींदार परिवार रियासतकाल से यहां देवी-देवताओं की सेवा करता आ रहा है। इस वर्ष 11, 12 और 13 फरवरी को मेला भरेगा। इलाके के लोग इस मेले में काफी संख्या में शामिल होते हैं और यहां की मिट्टी अपने साथ ले जाते हैं और वर्ष भर शुभ काम करने से पहले इस मिट्टी की पूजा की जाती है।
तीन देवियों का यहीं होता है मिलन
मान्यता है कि रामाराम (Sukma Ramaram Mela 2025) में 3 देवियों का मिलन होता है, जो बहनें हैं। मान्यता के मुताबिक माता चिटमिटिन, रामारामिन और मुजरिया छिंदगढ़ का मिलन यहां होता है। इन सभी का स्वागत आदिवासी परंपराओं के साथ होता है। इस मेले के आयोजन के बाद से जिले में जगह-जगह मेलों का सिलसिला शुरू हो जाता है। दक्षिण बस्तर में मेले केवल मनोरंजन और क्रय-विक्रय का जरिया न होकर आपसी मेल-मिलाप का केंद्र भी हुआ करते हैं।
बस्तर दशहरा और रामाराम मेले का है संबंध
सुकमा जिले के रामाराम मेला (Sukma Ramaram Mela 2025) और बस्तर का प्रसिद्ध दशहरा दोनों छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज की धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं से गहरे जुड़े हुए हैं। हालांकि दोनों आयोजनों का स्वरूप और महत्व अलग-अलग है, लेकिन इनमें कुछ सांस्कृतिक समानताएं और पारस्परिक संबंध हैं। रामाराम मेला सुकमा जिले में आयोजित एक प्रमुख आदिवासी मेला है। यह मेला धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का संगम है, जहां आदिवासी समुदाय अपने देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। इसमें प्रमुख देवता मावली माता और अन्य स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा की जाती है।
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आदिवासी समाज के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल
सुकमा जिले में स्थित रामाराम देवी मंदिर छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को भी संजोए हुए है। रामाराम (Sukma Ramaram Mela 2025) देवी मंदिर को देवी मावली माता का प्रमुख निवास स्थान माना जाता है।
इस मंदिर का धार्मिक महत्व है। इसके अलावा हर साल यहां भरने वाला मेला सुकमा जिले के बड़े आयोजनों में से एक है, जो धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इस स्थल का ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भ इसे और महत्वपूर्ण बनाता है। आसपास की प्राकृतिक सुंदरता इसे पर्यटन के लिए अनुकूल स्थान बनाती है। कहते हैं यहां कभी खुली जेल भी थी।
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