National Consumer Day: 24 दिसंबर को भारत में उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। चूंकि वर्ष 1986 में उपभोक्ता संरक्षण कानून पारित हुआ था जो उपभोक्ताओं को उनके अधिकार प्रदान कराए जाने का एक सशक्त कानून था।
समय के साथ कानून में परिवर्तन हुए और वर्ष 2019 में कई परिवर्तन हुए। चूंकि वर्ष 1986 के कानून में केस दायर करने की अधिकारिता जहां अनावेदक रहता है या कार्य करता है या जहां विवाद प्रारंभ हुआ परंतु जहां उपभोक्ता निवास करता है वहां पर प्रकरण नहीं लगा सकता था।
जैसे कोई व्यक्ति दिल्ली से खरीददारी करके आया और उसमें कोई खामी होने की दशा में उसे अपना प्रकरण लगाने दिल्ली जाना पड़ता था। परंतु नए उपभोक्ता कानून में यह अहम परिवर्तन करते हुए जहां उपभोक्ता निवास करता है वहां अपना प्रकरण प्रस्तुत कर सकेगा, जोड़ दिया गया है।
इसी प्रकार आजकल ऑनलाइन शॉपिंग जैसे ई-प्लेटफॉर्म के दौर में यह जरूरी था क्योंकि ऑनलाइन शॉपिंग के दौर में तो उपभोक्ता को बड़ी दिक्कत आती।
उपभोक्ता कानून में उपभोक्ता को 6 अधिकार प्राप्त हैं।
सुरक्षा का अधिकार
चुनाव का अधिकार
सुनवाई का अधिकार
निवारण का अधिकार
सूचना का अधिकार
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
बाजार में तेजी से बढ़ रही प्रतिस्पर्धा के कारण उपभोक्ता के साथ अनुचित व्यापार, शोषण आदि न हो, ग्राहकों को सुरक्षा प्राप्त हो सके, इसलिए उपरोक्त 6 अधिकार प्रदान किए गए।
सुरक्षा का अधिकार
उपभोक्ता को अपने जीवन और संपत्ति के लिए खतरनाक वस्तु या सेवाओं के नुकसान को लेकर जैसे कि गैस सिलेंडर, विद्युत उपकरण आदि से कोई विनिर्माण त्रुटि से उपभोक्ता के जीवन और संपत्ति को नुकसान हो सकता है, उससे बचाने के लिए प्रदान करता है।
चुनाव का अधिकार
उपभोक्ता को अपनी मनपसंद चीजें, सेवाएं चुनने का अधिकार प्रदान करता है।
सुनवाई का अधिकार
अर्थात उपभोक्ता को अपने हितों के संरक्षण के लिए स्वयं भी अपने मामले की सुनवाई का अधिकार है, अर्थात बिना अधिवक्ता के भी मामले का निराकरण कराने की प्रक्रिया कर सकेगा।
निवारण का अधिकार
उपभोक्ता को अनुचित व्यापार अथवा शोषण के विरुद्ध न्याय पाने अथवा मुआवजा पाने का अधिकार है।
सूचना का अधिकार (जानने का अधिकार)
उपभोक्ता को वस्तुओं की गुणवत्ता, कीमत, शुद्धता आदि की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
उपभोक्ता को जागरुक बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान हासिल करने का अधिकार है। साक्षर उपभोक्ता सरलता से जरूरी जानकारी प्राप्त कर सकता है। लेकिन अशिक्षित उपभोक्ता अपने अधिकारों की जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए सरकार द्वारा जागो ग्राहक जागो एवं स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी जोड़ना प्रारंभ कर दिया है जिससे जागरुकता आए और अपने अधिकारों को समझकर उनके बचाव एवं संरक्षण कर सके।
परंतु अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। कभी भी विक्रेता की बातों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। पहले उत्पाद के बारे में उसकी गुणवत्ता के बारे में अच्छी तरह जांच परख करके सावधानी बरतने से उपभोक्ता शोषण या अनुचित व्यवहार से बच सकता है। उपभोक्ता को कैश मैमो पर ध्यान देते हुए बिल लेना चाहिए। उत्पाद का वारंटी/गारंटी कार्ड जरूर प्राप्त करें जिसमें तारीख एवं मुहर जरूर लगवाएं ताकि सामान में खराबी आने पर कार्यवाही कर सकें।
उपभोक्ता को तीन स्तरीय वाद प्रस्तुत करने का अधिकार है। सर्वप्रथम जिला आयोग जहां अधिकतम 50 लाख तक के मामले प्रस्तुत कर सकते हैं। 50 लाख तक के मामलों की सुनवाई में कोई भी शुल्क अदा नहीं करना पड़ता है।
उपभोक्ता वाद प्रस्तुत करने में समय सीमा वाद प्रस्तुत करने के लिए 2 वर्ष निर्धारित की गई, अर्थात विवाद के 2 वर्ष के भीतर प्रकरण प्रस्तुत किया जाना चाहिए। परंतु यदि आयोग को ऐसा प्रतीत होता है कि विलंब का कोई समुचित कारण है तो वह स्वीकार कर सकेगा।
उपभोक्ता आयोग में प्रकरण प्रस्तुत करने के उपरांत शपथ पत्र पर साक्ष्य लिए जाने का प्रावधान है अर्थात सिविल अथवा आपराधिक कोर्ट की भांति न्यायालय में गवाही और जिरह की प्रक्रिया नहीं होती है। इन मामलों का विचारण संक्षिप्त प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है ताकि उपभोक्ताओं को सुगमता एवं सहजता से न्याय प्राप्त हो सके। उपभोक्ता के साथ छलावा ना हो सके।
लेखक जागृति खरे, उपभोक्ता अधिकार एवं जागरूकता संबंधी मामलों की एक्सपर्ट हैं।