Tansen Interesting Facts: तानसेन मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल थे, लेकिन उनका दरबार का हिस्सा बनने का सफर इतना सरल नहीं था। अकबर के दौर में ग्वालियर के संगीत घराने का बहुत उच्च स्थान था। तानसेन ग्वालियर के एक छोटे से गाँव बेहट में जन्मे थे।
यह कहा जा सकता है कि मुगल बादशाह अकबर के दरबार में ग्वालियर के संगीत घराने का इतना सम्मान था कि उनके दरबार में 18 गायक थे, जिनमें से 11 ग्वालियर से संबंध रखते थे। और इन सभी 18 गायकों के गुरु तानसेन ही थे।
ब्राह्मण परिवार में हुआ जन्म
किताब ‘सलातीन-ए-देहली व शाहान-ए-मुग़लिया का ज़ौक़-ए-मौसीक़ी’ में प्रोफेसर मोहम्मद असलम लिखते हैं कि तानसेन का जन्म ग्वालियर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता मकरंद पांडे, प्रसिद्ध सूफी संत हज़रत मोहम्मद ग़ौस का बहुत सम्मान करते थे।
शादी के बाद जब उनके कोई संतान नहीं हुई, तो उन्होंने हज़रत मोहम्मद ग़ौस से दुआ की कि अल्लाह उन्हें संतान दे। उनकी दुआ का असर हुआ और तानसेन का जन्म हुआ। बचपन में तानसेन का नाम रामतनु पांडे रखा गया था।
तानसेन की सूफी परवरिश
Tansen Interesting Facts: जब तानसेन पांच साल के थे, उनके पिता उन्हें हज़रत मोहम्मद ग़ौस के पास लेकर गए और उनसे प्रार्थना की कि तानसेन संगीत में नाम रोशन करें। उस वक्त हज़रत मोहम्मद ग़ौस पान चबा रहे थे। पान चबाते हुए उन्होंने अपनी लार तानसेन के मुंह में डाल दी। यह देखकर मकरंद पांडे ने कहा कि अब इसे आपके चरणों में ही जगह दे दीजिए क्योंकि यह हमारे धर्म से बाहर निकल गया है।
इसके बाद हज़रत मोहम्मद ग़ौस ने तानसेन की परवरिश अपने बेटे की तरह की। उन्होंने तानसेन को ग्वालियर के प्रमुख संगीतज्ञों से संगीत की शिक्षा दिलवाई। तानसेन ने सुल्तान आदिल शाह के सामने अपनी प्रस्तुति दी और बाद में दक्षिण में नायक बख्शू की बेटी से रागों को गहराई से समझा। गौरतलब है कि तानसेन को ‘संगीत सम्राट’ की पदवी उनके गुरु मोहम्मद गौस ने दी थी, जो एक प्रसिद्ध सूफी संत थे।
तानसेन के संगीत की विशेषता
तानसेन के संगीत की अद्वितीयता का सबसे बड़ा उदाहरण ‘राग मल्हार’ है। माना जाता है कि इस राग में इतनी शक्ति थी कि तानसेन अपने सुरों से बारिश भी करा सकते थे। यह राग उनकी विशेषता के रूप में जाना जाता है और उनकी संगीत प्रतिभा की मिसाल है। तानसेन ने अपने अद्वितीय संगीत ज्ञान और रचनात्मकता से भारतीय शास्त्रीय संगीत में नए आयाम जोड़े।
एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार, उन्होंने एक बार अपने संगीत से बिना हाथ लगाए दीप जलाए थे। इसके अलावा, तानसेन को उनकी महाकाव्य ध्रुपद रचनाओं और कई नए रागों की रचना के लिए याद किया जाता है। उन्होंने उस जमाने में संगीत पर दो क्लासिक किताबें लिखी, जिवका नाम श्री गणेश स्तोत्र और संगीता सार है।
तानसेन ने छेड़ी तान, टेढ़ा हो गया मंदिर
जानकारी के लिए बता दें, ब्राह्मण परिवार में जन्मे होने के बावजूद, तानसेन बकरियां चराते थे और रोजाना झिलमिल नदी के किनारे स्थित भगवान शिव के मंदिर में बकरी का दूध चढ़ाते थे। एक बार का किस्सा है कि जब वे भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें यह याद आया, तो वे तुरंत व्याकुल हो उठे और खाना छोड़कर मंदिर की ओर दौड़ पड़े।
कहा जाता है कि उनकी इस भक्ति से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने तानसेन को साक्षात दर्शन दिए और उनसे संगीत सुनने की इच्छा प्रकट की। भगवान शिव के कहने पर तानसेन ने ऐसी तान छेड़ी कि मंदिर ही टेढ़ा हो गया।
तानसेन ने सीखा पशु-पक्षियों की आवाज निकालना
तानसेन जब गाते थे, तो झिलमिल नदी की मछलियों से लेकर सभी पशु-पक्षी उनके आसपास इकट्ठा हो जाते थे। इसी प्रकार, तानसेन ने पशु-पक्षियों की आवाज निकालना भी सीख लिया था। जिस स्थान पर वह अपने संगीत का रियाज करते थे, आज वहां एक चबूतरा बना दिया गया है।
धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ती गई और उन्हें दूर-दूर से बुलावे आने लगे। उनकी अद्वितीय संगीत प्रतिभा के कारण उन्हें ‘सुरों के सेनापति’ अर्थात ‘तानसेन’ की उपाधि भी मिली।
भक्त के लिए दुबारा झुके भगवान
कहते हैं कि भक्त भगवान से आस्था रखते हैं, लेकिन जब भगवान खुद भक्त से जुड़ जाए, तो किसी भी चमत्कार की संभावना हो सकती है। एक प्रचलित किंवदंती (Tansen Interesting Facts) के अनुसार, एक बार तानसेन ने अकबर को टेढ़े मंदिर का किस्सा सुनाया। अकबर ने जिद पकड़ ली और तानसेन को साथ लेकर बेहट के उसी मंदिर पहुंचे। वहाँ उन्होंने मंदिर को सही करने का आदेश दिया।
इसके बाद अकबर ने तानसेन से कहा कि यदि उन्होंने इस मंदिर को सीधा नहीं किया तो उनका सर कलम कर दिया जाएगा। राजा के इस रवैये से तानसेन अचरज में पड़ गए, लेकिन मजबूर होकर उन्होंने ध्रुपद राग गाना शुरू किया और ऐसी तान छेड़ी कि मंदिर का झुकाव उसी दिशा में हो गया, जिस दिशा में बैठकर तानसेन गा रहे थे। आज भी यह मंदिर उसी स्थिति में है।
तानसेन की गायकी का दिलचस्प किस्सा
तानसेन के जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा (Tansen Interesting Facts) तब हुआ जब एक लड़की ने उनकी गायकी को चुनौती दी। दरअसल, ग्वालियर के हजरत मोहम्मद गौस ने तानसेन को जाने-माने संगीतज्ञों से शिक्षा दिलाई थी। अगले दौर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए तानसेन ने दक्षिण का रुख किया।
पाँच साल की शिक्षा लेने के बाद तानसेन दक्षिण के प्रसिद्ध संगीतज्ञ बख्शू की बेटी से रागों की शिक्षा लेने पहुंचे। तानसेन ने सुन रखा था कि बख्शू की बेटी रागों की बेहतरीन शिक्षा दे सकती हैं। जब तानसेन उनके पास पहुंचे, तो उन्होंने कुछ सुनाने को कहा। तानसेन ने अपना गीत गाया, लेकिन वह उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने कहा, “अभी कुछ और सीखो।”
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यह सुनने के बाद तानसेन वापस लौट आए और उन्होंने अपने गुरु को पूरी घटना बताई। उनके गुरु ने धैर्य रखने की सलाह दी और कहा, “धीरज रखो, एक दिन ऐसा आएगा जब वह तुम्हारी गायकी की कद्र करेंगी।”
सपना जो बदलाव लेकर आया
तानसेन के मन में वही बातें घूमती रहीं जो बख्शू की बेटी ने कही थी। वे सो गए और उन्हें एक सपना आया। सपने में उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति उन्हें कई विशेष ध्रुपदें याद करा रहा है। वह सब उन्हें इतना अच्छी तरह याद हो गया कि सोकर उठने के बाद भी उन्हें याद रहा। उनके गुरु ने कहा, “ऐसा लगता है कि बख्शू ने तुम्हें गायकी में महारथ सौंप दी है।”
जब तानसेन को खुद पर भरोसा हो गया कि वह इस काबिल हो गए हैं कि बख्शू की बेटी के सामने खड़े हो सकते हैं, तो वे दक्षिण वापस पहुंचे और उनके समक्ष गीत सुनाया। गीत सुनने के बाद वह दंग रह गईं।
इस तरह तानसेन ने वह शिक्षा प्राप्त की जिसकी उन्हें चाहत थी। रागों की शिक्षा पूरी करने के बाद तानसेन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यह घटना तानसेन की संगीत यात्रा और उनके समर्पण की मिसाल है। उनके धैर्य और कठिन परिश्रम ने उन्हें संगीत के शिखर पर पहुंचाया।
ग्वालियर में मनाया जा रहा तानसेन शताब्दी वर्ष
तानसेन समारोह का इस साल शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। ऐसे में इस बार तानसेन समारोह के मुख्य मंच की थीम महेश्वर के किले पर रखी गई है।
इसकी सुंदरता और भव्यता को दर्शाने के लिए 5D लुक में 40 वाय 80 का भव्य मंच तैयार किया जाएगा। इसमें विभिन्न प्रस्तुतियों दी जाएंगी। कई सभाओं का आयोजन किया जाएगा। एक सभा बेहट में भी की जाएगी।