Government School Teacher: स्कूल शिक्षकों का लक्ष्य सिर्फ सब्जेक्ट का सिलेबस पूरा करना नहीं बल्कि छात्रों को अच्छा नागरिक बनाना भी है। दुर्भाग्य से आज शिक्षकों की भूमिका सीमित कर दी गई है। उनकी भूमिका शिक्षा नीति बनाने में नहीं बल्कि उसे लागू कराने पर ज्यादा केंद्रित है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए अकेडमिक काउंसिल के माध्यम से शिक्षकों की भूमिका को फिर से सशक्त और सामर्थ्यवान बनाने की जरूरत है।
शिक्षा में कमजोर हालत के लिए खुद शिक्षक भी जिम्मेदार- बेहार
यह विचार स्कूल शिक्षाविद् और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद्र बेहार ने शुक्रवार, 15 नवंबर को भोपाल में देश के जाने-माने शिक्षाविद् गिजूभाई के जयंती समारोह में व्यक्त किए। चिंतन शिविर एवं गिजूभाई सम्मान समारोह में प्रदेश के कोने-कोने से आए शिक्षकों को संबोधित करते हुए बेहार ने कहा कि स्कूल शिक्षकों की कमजोर हुई भूमिका के लिए बहुत हद तक खुद शिक्षक भी जिम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने छात्रों के हित से सोचना और बोलना बंद कर दिया।
‘शिक्षकों ने सोचना और बोलना छोड़ दिया’
शिक्षकों को यह सोचना और बोलना चाहिए कि मैं अपनी क्लास-स्कूल में छात्रों को ऐसे पढ़ाना चाहता हूं। इसके लिए लिए मुझे सरकार से ये-ये सुविधाएं चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से शिक्षकों ने बच्चों के हित में ऐसा सोचना और बोलना छोड़ दिया और अपने वेतन-सुविधाओं पर ज्यादा केंद्रित हो गए। हमारे आज के सिस्टम की विडंबना ये है कि जो सोचता है, उसे करना नहीं रहता है और जिसे करना होता है, उसे सोचने या सहभागिता का मौका नहीं मिलता।
‘शिक्षकों पर थोपी गईं मनमानी नीतियां’
अभी शिक्षा नीति बनाने और लागू करने में भी ऐसा ही हो रहा है। नीति प्रशासक तैयार कर रहे हैं और उसे शिक्षकों पर थोप दे रहे हैं कि लागू तुम करो। शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए यह व्यवस्था बदलना जरूरी है। इसके लिए बेहार ने शिक्षकों की अकेडमिक काउंसिल व्यवस्था को उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि स्कूल शिक्षकों की अकादमिक काउंसिल जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बननी चाहिए।
सुधार के लिए शिक्षकों की अकादमिक परिषद जरूरी
अकादमिक परिषद के माध्यम से स्कूल शिक्षकों को सरकारों से तीन स्तर पर अपनी बात रखनी चाहिए। पहली- शिक्षक के रूप में मैं यह कर सकता हूं, ऐसे-ऐसे करूंगा और उसके लिए मुझे ये-ये संसाधन या सुविधाएं चाहिए। दूसरी- मैं अपने स्कूल में बच्चों के हित में ये करना चाहता हूं, ऐसे करूंगा और इसके लिए मुझे ये-ये संसाधन चाहिए। तीसरी- प्रशासकों से पूछो कि नीति के नाम पर आप हमसे जो कहते हैं कि ये-ये करना है तो आप बताओ कि ये कैसे होगा।
शिक्षकों की सामूहिक आकांक्षा का मंच बनें अकेडेमिक काउंसिल
शिक्षकों ने ऐसा सोचना और बोलना शुरू नहीं किया तो आज जो कुछ चल रहा है वो आगे भी चलता रहेगा। मैं चाहता हूं कि अकादमिक परिषदें ऊपर से आने वाले आदेशों-निर्देशों का पालन करने की बजाय समाज और देशहित में शिक्षकों की सामूहिक आकांक्षा का प्रभावी मंच बनें।
स्कूल शिक्षक बेचारा नहीं उसे ऐसा बना दिया गया-डॉ. दामोदर जैन
समारोह का आयोजन करने वाले शिक्षकों के रचनात्मक मैत्री संगठन शिक्षक संदर्भ समूह के संस्थापक समन्यवक डॉ. दामोदर जैन ने कहा कि देश का स्कूल शिक्षक बेचारा नहीं है, उसे व्यवस्था ने बेचारा बना दिया है। वो सबसे सशक्त और सामर्थ्यवान है, लेकिन नीति-प्रशासन और प्रबंधन के नाम पर उस पर तरह-तरह के प्रयोग लादे गए हैं। एनसीईआरटी जैसी शीर्ष संस्थाओं में शिक्षकों से बौद्धिक गुलामों की तरह व्यवहार किया जाता है।
शिक्षा में सुधार के लिए IAS की IES कैडर बने
बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के लिए सहायक शिक्षक के रूप में भर्ती होने वाला टीचर इसी पद से रिटायर कर दिया जाता है। इसके विपरीत आईएएस बनने वाला एक अफसर उप-सचिव के स्तर से हर पांच साल में प्रमोशन की व्यवस्था के चलते प्रदेश के सर्वोच्च प्रशासनिक पद मुख्य सचिव तक पहुंच जाता है। उन्होंने शिक्षा और शिक्षकों की स्थिति में सुधार के लिए IAS की तरह IES (इंडियन एजुकेशन सर्विस) बनाने की वकालत की।
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शिक्षकों को गिजूभाई सम्मान से नवाजा
समारोह के पहले सत्र में राज्य आनंद संस्थान के निदेशक सत्यप्रकाश ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उन्होंने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि अब कक्षा 1से 8 तक में भी आनंद कक्षाओं का संचालन किया जाएगा। अभी केवल कक्षा 9 से 12 के बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित होता है। कार्यक्रम में ऐड एट एक्शन के क्षेत्रीय प्रबंधक प्रवीण भोपे, दुष्यंत संग्रहालय की सचिव करुणा राजुरकर, आरईआई के प्रोफेसर अश्विनी कुमार गर्ग और सर्च एंड रिसर्च सोसाइटी की चेयरपर्सन डॉ. मोनिका जैन ने भी अपने विचार रखे। समारोह के अंत में प्रदेशभर से आए शिक्षकों को शिक्षाविद् गिजूभाई सम्मान से अलंकृत किया गया।
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