MP High Court Bar Council: प्रदेश के 6,000 युवा अधिवक्ताओं के पंजीकरण में देरी के मामले में एमपी हाई कोर्ट ने सुनवाई की। मध्य प्रदेश में पिछले 4 महीनों से स्नातक उत्तीर्ण अधिवक्ताओं के (Law Student Registration MP) पंजीकरण नहीं हुए, जिससे युवा अधिवक्ता कोर्ट में प्रैक्टिस या सिविल जज की परीक्षा में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं। हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य बार काउंसिल को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
रजिस्ट्रेशन में देरी को लेकर नोटिस
पंजीकरण में देरी को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल को नोटिस भेजा है। पिछले 4 महीनों से लॉ ग्रेजुएट हो चुके जिनके रजिस्ट्रेशन नहीं हुए। इसी मामले में हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाई गई। जिसकी सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश।
कई महिनों से नहीं हुई मीटिंग
याचिका के अनुसार, पिछली नामांकन समिति की बैठक 29 जुलाई, 2024 को हुई थी और तब से, राज्य रोल पर इच्छुक अधिवक्ताओं के नामांकन को रोकने के लिए कोई बाद की बैठक नहीं बुलाई गई है। याचिका में जोर दिया गया है कि बार काउंसिल (Bar Council MP) की लंबे समय तक निष्क्रियता केवल एक प्रशासनिक देरी नहीं है, बल्कि हजारों योग्य लॉ ग्रेजुएट के कौशल का व्यर्थ होना है।
यह भी पढ़ें: एमपी के किसानों ने उगाई 54 लाख टन मसाले की फसलें: स्पाइस स्टेट बनकर देश में मध्य प्रदेश का पहला स्थान
बार काउंसिल अपने दायित्व को नहीं निभा रहा
याचिका में कहा गया है कि बार काउंसिल की निष्क्रियता से अधिवक्ताओं (MP Law Student) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, जैसे कि पेशे को आगे बढ़ाने और आजीविका सुरक्षित करने का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(ग)) प्रक्रियात्मक न्याय और पारदर्शिता का अधिकार इसके अलावा, याचिका में यह भी कहा गया है कि बार काउंसिल अपने वैधानिक कर्तव्यों की उपेक्षा कर रही है और लॉ क्षेत्र के पेशेवर मानकों को कम कर रही है।
यह भी पढ़ें: बुधनी में चुनाव ड्यूटी के दौरान बीएलओ की मौत: अचानक आया हार्ट अटैक, कुल 80% वोटिंग
योग्य कैंडिडेट की संख्या हो सकती है कम
याचिका में कहा गया है कि नामांकन की प्रतीक्षा कर रहे लॉ ग्रेजुएट न्यायपालिका के लिए संभावित कैंडिडेट हैं। मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 1994 के अनुसार सिविल जज परीक्षा में बैठने से पहले 3 साल की कानूनी प्रैक्टिस अनिवार्य है, इसलिए रजिस्ट्रेशन प्रोसेस में देरी से योग्य उम्मीदवारों की संख्या कम हो रही है। याचिकाकर्ता ने राज्य बार काउंसिल को लंबित आवेदनों का समाधान करने के लिए परमादेश की मांग की है।