Janjatiya Gaurav Diwas 2024: देशभर में आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को मनाई जाएगी। आदिवासी संगठनों ने इस उत्सव को मनाने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं केंद्र और राज्य सरकारों ने भी जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम की तैयारी पूरी कर ली है। इतना ही नहीं इसकी शुरुआत भी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हो गई है।
ऐसे में जहन में आता है कि झारखंड के जंगलों में विचरण करने वाला एक आम आदिवासी (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) लड़का, जो अब ट्राइब्स के लिए भगवान बन गया है। जिसे आदिवासी पूजते हैं। आइये हम आपको बताते हैं, एक आम लड़का कैसे कृतिकारी बना और फिर समय बदलते-बदलते वह भगवान बन गया।
इसलिए की जनजातीय गौरव दिवस की शुरुआत
देशभर में निवास करने वाले आदिवासियों (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) के सम्मान के लिए 15 नवंबर 2021 को जनजातीय गौरव दिवस पहली बार मनाया गया। इस आदिवासी गौरव दिवस को मनाने का उद्देश्य देश की आदिवासी सांस्कृतिक, विरासत, धरोहर का संरक्षण करना है। साथ ही इनका राष्ट्र के निर्माण क्या योगदान है, उस योगदान को याद करने और आदिवासियों के सम्मान में यह दिवस मनाया जाने लगा। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। केंद्र सरकार के द्वारा धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था।
इसलिए किया जाता है आयोजन
आदिवासी गौरव दिवस (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) कार्यक्रम हर साल 15 नवंबर को आयोजित किया जाता है। इस आयोजन के माध्यम से आदिवासी सांस्कृतिक, विरासत के संरक्षण और राष्ट्रीय गौरव, वीरता व आतिथ्य के भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। इसके साथ ही आदिवासियों के प्रयासों को मान्यता प्रदान करने के लिए भी जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है।
जंगल में आम जीवन जीते थे बिरसा मुंडा
ब्रिटिश हुकुमत के दौरान बिरसा मुंडा आदिवासी (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) बेल्ट के बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) के जंगलों में विचरण किया करते थे। वे जंगली कंदमूल, फल व खाद्य सामग्री एकत्रित कर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। तभी इनके इलाके में ब्रिटिश हुकुमत के द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार किया जाने लगा। इससे आक्रोशित युवा बिरसा मुंडा ने विद्रोह छेड़ दिया। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। उन्होंने देश के कई क्षेत्रों में आदिवासी आंदोलन कर बिटिश को हड़काया। आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले आदिवासी समुदाय, जिनमें तामार, खासी, संथाल, मिज़ो, भील और कोल के लोग शामिल रहे थे।
जानें बिरसा मुंडा का इतिहास
इतिहास के पन्नों को जब खंगालते हैं तो पता चलता है कि बिरसा मुंडा (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) झारखंड के मुंडा जनजाति में जन्मे थे। भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी में हुआ था। 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटिश शासन ने बिरसा मुंडा के इलाके में आदिवासियों और जल, जंगल, जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया था। इसके खिलाफ बिरसा मुंडा ने आदिवासी बेल्ट के बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में आदिवासी आंदोलन का प्रतिनिधित्व किया था।
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देश की आजादी में निभाई अहम भूमिका
भगवान बिरसा मुंडा विद्रोही और बड़े आदिवासी (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) आंदोलनकारी के रूप में उभरे। उन्होंने देश की आजादी में महत्वपूर्ण और अहम भूमिका निभाई। बिरसा मुंडा ने शोषक ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी और डटकर सामना किया। इस बीच वे कई बार जेल भी गए। 19वीं शताब्दी में वर्तमान बिहार व झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में एक भारतीय आदिवासी धार्मिक सहस्त्राब्दि आंदोलन भी उनके नेतृत्व में किया गया था। ये आंदोलन उस समय का बड़ा आंदोलन था।
25 साल की उम्र में बन गए भगवान
भगवान बिरसा मुंडा (Janjatiya Gaurav Diwas 2024) का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी में हुआ था। उनके तरह-तरह के आंदोलन के बाद ब्रिटिश हुकुमत ने 1900ई को बिरसा मुंडा को अरेस्ट कर लिया था। इसके बाद रांची जेल में बिरसा मुंडा का निधन हो गया। बताया जाता है कि उनकी मृत्यु हेजा के कारण हुई थी।
उस समय वे लगभग 25 साल के थे। इसके बाद बिरसा मरे नहीं, बल्कि वे आदिवासियों के बीच अमर हो गए। जब भी हम आदिवासी विद्रोह की बात करेंगे तो सबसे पहले भगवान बिरसा मुंडा का नाम आता है। अब देश का पूरा आदिवासी समाज उनको भगवान के रूप में पूजने लगा है। उनकी जयंती के मौके पर हर साल पूजा की जाती है।
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