Retail Inflation: रोज-मर्रा के उपयोग से लेकर खाने-पीने की चीजें महंगी होने से अक्टूबर में रिटेल महंगाई दर ( Retail Inflation Rate) बढ़कर 6.21% पर पहुंच गई है। ये महंगाई का 14 महीनों का उच्चतम स्तर (Highest Level) है। अगस्त 2023 में महंगाई दर 6.83% रही थी। वहीं अक्टूबर से एक महीने पहले सितंबर में भी सब्जियां महंगी होने से ये दर 5.49% पर पहुंच गई थी।
महंगाई ने RBI की सहनीय सीमा 6% को किया पार
भारत की रिटेल महंगाई दर (Retail Inflation) अक्टूबर में बढ़कर 6.21% वार्षिक हो गई, जो पिछले महीने 5.49% थी। ऐसा माना जा रहा है कि त्योहारी सीजन में हाई फूड प्राइस (High Food Prices) के कारण महंगाई दर में बढ़ोतरी हुई है। अगस्त 2023 के बाद यह पहली बार था जब महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की 6% की सहनीय सीमा को पार कर गई। सितंबर में मुद्रास्फीति जुलाई के बाद पहली बार RBI के मध्यम अवधि के लक्ष्य 4% को पार कर गई, जो अब 5.49% तक पहुंच गई थी। महंगाई में लगातार बढ़ोतरी आम लोगों की जेब पर असर डाल रही है।
सब्जियों और तेल की कीमतों में आई तेजी
इस तरह बढ़ी महंगाई
महंगाई के कम- ज्यादा होने में लगभग 50% योगदान खाने-पीने की चीजों का रहता है। इसकी महंगाई महीने-दर-महीने आधार पर 9.24% से बढ़कर 10.87% हो गई है। वहीं ग्रामीण महंगाई 5.87% से बढ़कर 6.68% और शहरी महंगाई 5.05% से बढ़कर 5.62% हो गई है।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है ?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
कैसे बढ़ती-घटती है महंगाई ?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह मार्केट महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
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CPI से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (Consumer Price Index) यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है।
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। लगभग 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
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