Maharishi Valmiki Jayanti 2024: आज वाल्मीकि जयंती है। अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाने वाली वाल्मीकि जयंती पर पूरे देश में मनाई जाती है। सनातन धर्म में सबसे श्रेष्ठ गुरुओं में से एक माने जाने वाले महर्षि का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। उनके द्वारा महाकाव्य रामायण की रचना की गई है। यह धर्म ग्रंथ हिंदू, सनातन धर्म के लिए सबसे श्रेष्ठ ग्रंथ माना गया है, जो कि जीवन के सभी कर्तव्यों से परिचित कराता है।
रामायण की रचना के चलते वाल्मीकि (Valmiki Jayanti 2024) जी को समाज में अधिक प्रसिद्धि मिली है। शास्त्रों के अनुसार इनके पिता महर्षि कश्यप के पुत्र वरुण या आदित्य माने जाते हैं। वे एक समय गहरे ध्यान में बैठे हुए थे। वे ध्यान में ऐसे बैठ कि उनके शरीर को दीमक ने अपना घर बना लिया और मिट्टी से ढक लिया। तभी से वाल्मीकि कहलाए और हिंदू समाज उनको पूजने लगा।
ये किस्सा सबसे प्रचलित है
महर्षि बनने से पहले वाल्मीकि (Valmiki Jayanti 2024) रत्नाकर नाम से जाने जाते हैं। ये रत्नाकर नाम का खूंखार डाकू से लोग डरते थे। ये रत्नाकर अपना परिवार पालने के लिए लोगों को लूटते थे। ऐक बार का किस्सा यह भी प्रचलित है कि एक बार ऐसो होता है कि निर्जन वन में देवर्षि नारद मुनि रत्नाकर डाकू से मिलते हैं। रत्नाकर ने नारद जी को लूटने की कोशिश की।
तभी नारद जी ने रत्नाकर से पूछ लिया कि तुम ऐसा घिनौना कर्म क्यों करते हो, किसके लिए करते हो। रत्नाकर वाले कि मुझे मेरा परिवार पालने के लिए ऐसा करना पड़ता है। नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो अपराध, जिनके लिए कर रहे हो, क्या वे आपके पापों में भागीदार बनेंगे। ये सुनकर वे अचंभित हो जाते हैं। तुम्हारे परिवार वाले इस पाप में भागीदार नहीं बनेंगे, फिर क्यों उनके लिए पाप कर रहे हो। इतना सुनकर रत्नाकर डाकू ने नारद के पैर पकड़ लिए।
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नहीं हो पा रहा था राम नाम का उच्चारण
रत्नाकर (Valmiki Jayanti 2024) डाकू को नारद जी ने जो प्रेरणा दी। उनके द्वारा राम नाम का जप करने की प्रेरणा के बाद वे राम-नाम के जप की घोर तपस्या करने लगे थे। तभी उनके साथ ऐसा हुआ कि उनके पापी कर्म के कारण उनकी जिव्ह्या पर राम-नाम का उच्चारण नहीं होता था। वे राम की जगह मरा-मरा जपते थे। वे मरा रटते-रटते रहे और एक दिन ऐसा आया कि मरा ही ‘राम’ हो गया। वे निरन्तर जप करते रहे और एक दिन रत्नाकर से ऋषि वाल्मीकि बने। जिनके संरक्षण में माता सीता और उनके तेजस्वी दो पुत्र लव और कुश सर्व समर्थ बनते हैं।
यह श्लोक बना रामायण ग्रंथ
एक बार ऐसा हुआ कि महर्षि वाल्मीकि (Valmiki Jayanti 2024) नदी के बैठे हुए थे। वहीं नदी के किनारे क्रौंच पक्षी का जोड़ा भी था। ये जोड़े प्रेमालाप में लीन थे। महर्षि उन्हें निहार रहे थे। तभी ऐसा हुआ कि एक व्याध ने क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया। नर पक्षी की मौत से दुखी होकर मादा पक्षी विलाप करती है। वाल्मीकि के मुख से स्वत: ही मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः. यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्. नामक श्लोक निकला। इसी श्लोक से महाकाव्य रामायण ग्रंथ का आधार बना और रामायण की रचना हो गई।
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