MP News: राजधानी भोपाल में पत्रकारिता को लेकर व्याख्यान रखा गया। जिसमें विचार साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि भारतीय पत्रकारिता संवेदनशीलता पर आधारित होनी चाहिए, न कि एक्सक्लूसिव खबरों पर। उन्होंने यह भी कहा कि हमें पश्चिमी अवधारणाओं को बिना सोचे-समझे अपनाने से बचना चाहिए। बता दें भोपाल में वरिष्ठ संपादक मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी की 105वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी में पत्रकारिता की अपेक्षाएं, वर्तमान परिप्रेक्ष्य को लेकर चर्चा की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्व संवाद केंद्र, मध्यप्रदेश के अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने की।
पत्रकारिता पेशा नहीं मिशन है
डॉ. दवे की बात से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय पत्रकारिता को अपनी जड़ों और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। पत्रकारिता का उद्देश्य समाज को जागरूक करना और सच्चाई को उजागर करना है, न कि सिर्फ सनसनी फैलाने वाली खबरें चलाना। डॉ. विकास दवे ने कहा कि हम सिखाते हैं कि पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं, अपितु मिशन है। याद रखिए कि मिशन हमेशा पवित्र नहीं होता और प्रोफेशन हमेशा गलत नहीं होता। पत्रकार अपने वैचारिक अधिष्ठान पर दृढ़ है तो वह अपना श्रेष्ठ योगदान समाज में दे सकता है।
आज खेमों में बंटी पत्रकारिता
इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता अब लोकतंत्र का वह मजबूत आधार नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता विभिन्न खेमों में बंट गई है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और मूल्य कम हो गए हैं। उनके शब्दों में से, पत्रकारिता अब वह नहीं रही जो सच्चाई को उजागर करने और न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए खड़ी होती थी। अब यह केवल खबरों को प्रस्तुत करने का एक माध्यम बनकर रह गई है, जिसमें सच्चाई और निष्पक्षता की कमी है।
पत्रकारिता के लिए AI बड़ा खतरा
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस (एआई) (AI In Journalism) को पत्रकारिता के लिए खतरा बताया। उन्होंने कहा कि पहले की तकनीक पत्रकारिता को सहयोग करती थी, लेकिन अब की तकनीक मनुष्य का स्थान ले रही है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यदि मशीनें पत्रकारिता में मनुष्य का स्थान ले लेंगी, तो संवेदनशीलता और सत्य की स्थापना खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि मामाजी की पत्रकारिता में मनुष्य केंद्र में था, जिससे उनकी पत्रकारिता में संवेदनशीलता और गहराई थी। उन्होंने पत्रकारिता से मनुष्य को विस्थापित होने से बचाने के लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सरकार से पुरस्कार वापस लाने की मांग
विश्व संवाद केंद्र न्यास के अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने संगोष्ठी में कहा कि स्वतंत्रता से पहले की पत्रकारिता में राष्ट्रीयता की भावना थी, लेकिन आजादी के बाद मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी जैसे पत्रकार दुर्लभ हो गए हैं। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने पत्रकारिता का इस्तेमाल करके कई झूठे नैरेटिव बनाए, और आज भी ऐसा होता है, जिससे विश्वसनीयता का संकट पैदा होता है। आहूजा ने मध्यप्रदेश सरकार से मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी की स्मृति में दिए जाने वाले पुरस्कार को फिर से शुरू करने का अनुरोध किया।