Euthanasia Guidelines In India: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इच्छा मृत्यु यानी गंभीर रूप से बीमार मरीजों का लाइफ सपोर्ट हटाने को लेकर नई गाइडलाइन का ड्राफ्ट जारी किया है। इसमें कहा गया है कि लाइफ सपोर्ट हटाने का फैसला डॉक्टरों को लेना होगा। वे कुछ शर्तों को ध्यान में रखकर ये तय करेंगे कि लाइफ सपोर्ट हटाया जाए या नहीं।
लाइफ सपोर्ट हटाने की 4 शर्त
1. मरीज को ब्रेनस्टेम डेड घोषित किया जा चुका है।
2. डॉक्टर्स अच्छे से जांच कर चुके हों कि मरीज की बीमारी एडवांस स्टेज में पहुंच गई है और इलाज से अब कोई फायदा नहीं होगा।
3. मरीज के परिजन लाइफ सपोर्ट जारी रखने से इनकार कर चुके हों।
4. लाइफ सपोर्ट हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत की जाए।
लाइफ सपोर्ट से कोई फायदा है या नहीं
गाइडलाइन्स में 4 बातें तय की गई हैं, जिनके आधार पर यह निर्णय लिया जाएगा कि लाइफ सपोर्ट को रोकना मरीज के लिए सही है या नहीं। यह तब किया जाएगा जब यह स्पष्ट हो कि गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज को लाइफ सपोर्ट से कोई लाभ नहीं होगा, या लाइफ सपोर्ट पर रखने से मरीज की परेशानी बढ़ सकती है।
IMA अध्यक्ष बोले- तनाव में आएंगे डॉक्टर्स
IMA अध्यक्ष डॉ. आर.वी. अशोकन का कहना है कि इन गाइडलाइन से डॉक्टरों में तनाव बढ़ेगा। सरकार की इन गाइडलाइनों के खिलाफ मेडिकल समुदाय में असंतोष है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के अध्यक्ष डॉ. आर.वी. अशोकन ने बताया कि ये दिशा-निर्देश डॉक्टरों को कानूनी जांच के दायरे में लाएंगे और उन पर दबाव डालेंगे। उन्होंने कहा कि डॉक्टर हमेशा नेक नीयत से क्लिनिकल फैसले लेते हैं। हर मामले में मरीज के परिवार को स्थिति समझाई जाती है और सभी जानकारी दी जाती है। सभी पहलुओं पर ध्यान देने के बाद ही निर्णय लिया जाता है।
ऐसी गाइडलाइन बनाना और यह कहना कि डॉक्टर गलत फैसले लेते हैं या निर्णय लेने में देरी करते हैं, यह स्थिति को गलत तरीके से पेश करने जैसा है। यह धारणा भी गलत है कि बिना जरूरत के मशीनों का उपयोग किया जाता है और इससे जीवन को बढ़ाया जाता है। इससे डॉक्टर कानूनी जांच के दायरे में आ सकते हैं। IMA इस डॉक्यूमेंट को पढ़ेगा और ड्राफ्ट गाइडलाइन्स के रिव्यू की मांग करते हुए अपने विचार रखेगा। कुछ चीजों को विज्ञान और परिस्थिति के हिसाब से परिजन, पेशेंट और डॉक्टर्स पर छोड़ देना चाहिए।
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क्या है टर्मिनल बीमारी ?
स्वास्थ्य मंत्रालय के ड्राफ्ट के अनुसार टर्मिनल बीमारी को ऐसी स्थिति माना गया है जो अपरिवर्तनीय या लाइलाज है, जिसमें निकट भविष्य में मृत्यु की संभावना ज्यादा होती है। इसमें गंभीर मस्तिष्क चोट भी शामिल हैं, जिनमें 72 घंटे या उससे ज्यादा समय तक कोई सुधार नहीं होता। गंभीर बीमारी में लाइफ सपोर्ट सिस्टम मरीज का दर्द बढ़ाते हैं। इसलिए उन्हें ठीक नहीं माना जाता है।
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