Sitaram Yechury Life Story: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी CPI(M) के महासचिव सीताराम येचुरी का निधन हो गया है. उन्होंने 72 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. सीताराम येचुरी दिल्ली के AIIMS के आईसीयू में भर्ती थे. माकपा ने मंगलवार को एक बयान में कहा था कि 72 वर्षीय येचुरी का AIIMS के ICU में इलाज किया गया था, वह एक्यूट रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन से पीड़ित थे.
जानें 17 साल की उम्र में राजनीति में आने वाले और 1990 के दशक में सीपीएम के पोस्टर बॉय येचुरी के जीवन से जुड़े रोचक किस्से-
ऐसे आए थे राजनीति में येचुरी
तेलंगाना आंदोलन के जरिए 17 साल की उम्र में राजनीति में आने वाले येचुरी को आपातकाल के दौरान पहचान मिली. कहा जाता है कि इमरजेंसी में येचुरी की मोर्चेबंदी से मजबूर होकर इंदिरा गांधी ने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति पद से इस्तीफा दे दिया था.
CPM के पोस्टर बॉय थे येचुरी
1990 के दशक में येचुरी सीपीएम के पोस्टर बॉय थे. मीडिया में पार्टी का पक्ष रखना हो या नेशनल टीवी में डिबेट करना हो, सीपीएम की तरफ से हर जगह येचुरी ही नजर आते थे.
इंदिरा को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया
25 जून 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी. येचुरी उस वक्त जेएनयू में पढ़ाई कर रहे थे. उन्होंने आपातकाल का विरोध करने के लिए एक संयुक्त स्टूडेंट्स फेडरेशन का गठन किया. इस संगठन के बैनर तले येचुरी ने इंदिरा के घर तक आपातकाल के विरोध में मोर्चा भी निकाला.
इंदिरा ने जब विरोध का कारण पूछा तो येचुरी ज्ञापन पढ़ने लगे. उन्होंने अपने ज्ञापन में लिखा था कि एक तानाशाह को यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के पद पर नहीं रहना चाहिए. आपातकाल के दौरान इंदिरा जेएनयू में एक कार्यक्रम करना चाहती थी, लेकिन छात्रों के विरोध की वजह से उनका कार्यक्रम नहीं हो पाया.
आखिर में इंदिरा गांधी ने जेएनयू के कुलाधिपति (चांसलर) पद से इस्तीफा दे दिया. इस इस्तीफे के कुछ दिन बात सीताराम येचुरी को उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया था. इमरजेंसी के दौरान येचुरी को उसी जेल में रखा गया, जिसमें अरुण जेटली थे.
वाक क्षमता और भाषण शैली से करते थे कायल
सीताराम येचुरी संसद के उच्च सदन में अपनी वाक क्षमता और तथ्यात्मक भाषण शैली विरोधियों को भी कायल करते रहे हैं. 2005 में वह पहली बार पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सदस्य बने. वह राज्यसभा में 18 अगस्त 2017 तक रहे. इस दौरान संसद में उन्होंने जनहित के कई मुद्दे उठाए.
जुलाई 2008 में जब मनमोहन सरकार के कार्यकाल में भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता हुआ उस दौरान सीताराम येचुरी चर्चा में रहे. मनमोहन सिंह इस डील को लेकर सीपीएम की कई शर्तें मानने को तैयार हो गए, लेकिन तत्कालीन सीपीएम महासचिव प्रकाश करात मानने को नहीं तैयार हुए. 8 जुलाई 2008 को प्रकाश करात ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी.
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