Indore Arihant Hospital: महिला की डिलेवरी में हुई चूक मामले में इंदौर कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अरिहंत अस्पताल और डॉ. नलिनी झवेरी पर 4 लाख रुपए का जुर्माना किया है। आपको बता दें कि ये रकम पीड़ित महिला को दी जाएगी। इसके साथ ही इलाज में खर्च हुआ अतिरिक्त पैसा भी दिलाया जाएगा। पीड़िता को सब मिलाकर करीब 12 लाख रुपए मिलेंगे।
बता दे कि मामला 11 साल पुराना है। परिवार को प्रसूता की डिस्चार्ज डेट यानी जुलाई 2014 से ही 12 प्रतिशत ब्याज से हर्जाना मिलेगा। कोर्ट ने माना कि प्रसूति के ऑपरेशन के बाद ब्लीडिंग होने लगी थी। पीड़िता की हालत खराब होने के बावजूद डॉक्टर और हॉस्पिटल मैनेजमेंट ने कुछ नहीं किया। हालात ज्यादा बिगड़ने पर दूसरे अस्पताल में शिफ्ट किया गया इसके बाद पीड़िता मौत के मुंह से बाहर आई। कोर्ट के फैसले के बाद अब हॉस्पिटल और डॉक्टर को 12% ब्याज साथ ही 3 लाख रुपए की भरपाई करनी होगी। ये फैसला 6 सितंबर को उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष बलराज कुमार ने सुनाया। इसकी कॉपी 9 सितंबर को जारी हुई है।
जानिए क्या है पूरा मामला
इंदौर के धनवंतरी नगर में रहने वाले गौरव महाशब्दे ने अपनी पत्नी रितुजा के गर्भाधान के लिए डॉक्टर नलिनी झंवेरी को दिखाया था। डॉक्टर से मिलने के बाद ये तय हुआ कि डिलेवरी तक प्रसूति को वे ही देखेंगी। इसके बाद उन्होंने प्रसव पीड़ा होने पर डॉक्टर की सलाह पर रितुजा को अरिहंत अस्पताल में भर्ती करा दिया। साथ ही 25 हजार रुपए भी जमा कर दिए। 24 घंटे के भीतर प्रसूति ने बच्ची को जन्म दिया।
ऑपरेशन के एक- दो घंटे बाद रितुजा को तेज ब्लीडिंग होने लगी, जो कि रुक ही नहीं ही थी। डॉक्टर ने इंजेक्शन दिए गए, लेकिन फिर भी खून का थक्का नहीं जमा। लगातार ब्लीडिंग को देखते हुए डॉक्टर को सूचना दी गई। इसके बाद उन्होंने स्टाफ को टेलीफोनिक जानकारी दे दी।
हालातों में सुधार नहीं होने पर गौरव ने अपनी ही रिश्तेदार और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शुभांगी महाशब्दे को बुलवाया। उन्होंने देखा तो ठीक इलाज नहीं होने की वजह से हालात बिगड़ते हुए दिथे। उन्होंने तत्काल स्टाफ को ट्रीटमेंट बदलने की सलाह दी, लेकिन स्टाफ ने ट्रीटमेंट करने से इनकार कर दिया।
हालातों के काबू में नहीं आने पर उसी रात ग्रेटर कैलाश हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया, जहां वो करीब 7 दिनों तक एडमिट रही। इसके बाद खतरे से बाहर आई। इस दौरान उनके इलाज में करीब 3 लाख रुपए अलग से खर्च हो गए थे।
जनवरी 2014 में दर्ज कराया का केस
खराब हालातों से बाहर आने के बाद गौरव और रितुजा ने हॉस्पिटल और डॉक्टर के खिलाफ लापरवाही का केस करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने वकील के जरिए दोनों को नोटिस भिजवाया और लापरवाही के चलते अलग से हुए खर्च के बदले 15 लाख रुपए का मुआवजा मांगा। डॉक्टर ने इससे इनकार करते हुए कहा कि उसने कोई लापरवाही नहीं की है, कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। इसके बाद जनवरी 2014 में केस दर्ज कराया।
कोर्ट ने सुनाया ये फैसला
कोर्ट ने जवाब और तर्कों के आधार पर पाया कि डॉक्टर नलिनी ने ही महिला पेशेंट का पूरा इलाज अरिहंत हॉस्पिटल में किया था। ऑपरेशन का सुझाव भी डॉक्टर ने दिया था। जब पीड़िता की तबीयत बिगड़ी तो अरिहंत हॉस्पिटल में सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं। इसके अलावा डॉक्टर ने भी हॉस्पिटल आकर अपनी ड्यूटी नहीं निभाई।
इसकी वजह से प्रसूता को ग्रेटर कैलाश अस्पताल में शिफ्ट कराया गया था, जिसमें 3 लाख रुपए अलग से खर्च आया था। प्रसव के बाद होने वाली ब्लीडिंग के अनुमान किए बगैर ही डॉ. ने ऑपरेशन कर दिया था। सारी जांचे खंगालने के बाद कोर्ट ने हॉस्पिटल और डॉक्टर दोनों की लापरवाही मानी और हर्जाना भरने का फैसला सुनाया।
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