Morena Shani Lok: ग्वालियर के मुरैना में ऐंती पर्वत पर शनिचरा धाम में जल्द ही महाकाल लोक की तर्ज पर शनि लोक बनेगा। आपको बता दें कि शनिलोक में सप्त ऋषियों और भगवान श्रीराम की विशालकाय प्रतिमा के साथ 18 अन्य मूर्तियां लगाई जाएंगी। इनमें हर मूर्ति की ऊंचाई 7 फीट होगी।
ये बनाई जा रहीं मूर्तियां
बता दे कि लगाई जाने वाली मूर्तियों का वजर करीब 2 टन के लगभग होगा। हर एक मूर्ति की लागत करीब 3 लाख रुपए है। ये मूर्तियां ऋषियों को तपस्या करते हुए, कमंडल लिए, आशीरवाद देते हुए, माला जपते हुए, ध्यान की मुद्रा में बनाई गईं हैं।
अब तक 8 मूर्तियां बन चुकी हैं, जिनमें से एक मूर्ति में पटिया वाले बाबा की मूर्ति शामिल है।
इसका वजन करीब 2 टन के लगभग रहेगा। प्रत्येक मूर्ति की लागत करीब 3 लाख रुपए है। ये सभी सप्तऋषि की प्रतिमाएं अलग-अलग मुद्राओं में तैयार की गई हैं, जो एक दूसरे से अलग दिखेंगी।
इनमें ऋषियों को तपस्या करते हुए, आशीर्वाद देते हुए, कमंडल लिए, माला जपते हुए, ध्यान की मुद्रा में बनाई गई है। अब तक 8 मूर्तियां बनकर तैयार हो चुकी हैं। इन मूर्तियों में एक मूर्ति पटिया वाले बाबा की शामिल है।
प्रभु श्रीराम की भी बनाई जा रही मूर्ति
एक मूर्ति प्रभु श्रीराम की भी बनाई जा रही है, जो कि 27 फीट लंबी, 8 फीट चौड़ी और 4 फीट मोटी चट्टान से बन रही है। मंदिर पर एक भव्य द्वार भी बनाया जाएगा।
इसके साथ ही श्रद्धालुओं के लिए बैठने की व्यवस्था और होटल भी तैयार किए जाएंगे। ये शनिलोक देकने में बिल्कुल बाबा महाकाल लोक की तरह दिखाई देगा, जो कि लाइटिंग और खूबसूरती में भव्य होगा।
ऐंती पर्वत पर विराजमान हैं शनि महाराज
जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर ग्राम ऐंती के पर्वत पर शनि महाराज का प्राचीन मंदिर है। मंदिर मे दो फीट ऊंची शनिदेव की प्रतिमा हैं। मंदिर की प्रचीनता इसकी गवाह है। इस मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि त्रेता युग में हनुमान जी सीताजी की खोज में लंका गए थे।
इस दौरान उन्होंने लंका दहन करने का प्रयास किया था। योग शक्ति के जरिए हनुमान जी को ये आभास हुआ कि उनके प्रिय सखा लंकापति रावण के पैरों के आसन बने हुए हैं।
यही वजह है कि लंका में आग नहीं लग रही है। शनिदेव को हनुमान जी ने रावण के पैरों से मुक्त कराकर लंका को छोड़ने के लिए कहा।
शनिदेव कुछ दूर चले और थक गए। लंका से बाहर निकलने के बाद असमर्थता पर शनिदेव के सुझाव के बाद हनुमान जी ने शनिदेव को लंका से फेंका। तब शनिदेव यहां इस पर्वत पर आकर गिरे। तब से ही इस पर्वत का नाम शनि पर्वत कहा जाने लगा।
विश्व की इकलौती शनि प्रतिमा
शनिदेव ने यहां पर घोर तपस्या की और शक्तियों का फल भी शनि देव ने इसी पर्वत से प्राप्त किया। आपको बता दें कि शनि देव के इस पर्वत पर शनिदेव की प्रतिमा की स्थापना सम्राट विक्रमादित्य ने करवाई थी।
शनिदेव की प्रतिमा के सामने ही हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित कराई थी, जो कि इकलौती दुर्लभ हैं। इस मंदिर का जीर्णाद्वार विक्रम संवत 1806 में तत्कालीन महाराज सिंधिया के माम दौलत राव सिंधिया ने कराया था। अभी ये मंदिर एमपी सरकार की संपत्ति होकर औकाफ के आधीन है। यहां के मंदिर कमोटी के अध्यक्ष जिला कलेक्टर हैं।
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