हाइलाइट्स
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मध्यप्रदेश में OBC आरक्षण का मुद्दा
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OBC आरक्षण पर सुनवाई नहीं करेगा MP हाईकोर्ट
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4 हफ्ते तक OBC आरक्षण पर नहीं होगी सुनवाई
MP OBC Reservation: मध्यप्रदेश में OBC आरक्षण के मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। 4 हफ्ते तक ओबीसी आरक्षण वाली किसी भी याचिका पर हाईकोर्ट सुनवाई नहीं करेगा। दरअसल, मध्यप्रदेश सरकार ने ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की हैं। सरकार चाहती है कि OBC आरक्षण के मामलों का निराकरण सुप्रीम कोर्ट करे। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट में OBC मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी है।
सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
ओबीसी आरक्षण की याचिकाओं पर 31 जुलाई को हाईकोर्ट में सुनवाई होनी थी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के संज्ञान में आया कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित 9 ट्रांसफर याचिकाओं में से एक ट्रांसफर याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के OBC मामलों की सुनवाई करने पर रोक लगाई है। इसके बाद कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति ने साफ कहा कि याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के आखिरी फैसले के बाद ही हाईकोर्ट बेंच मामलों की सुनवाई कर सकेगी। सभी याचिकाओं पर 4 हफ्ते तक कोई सुनवाई नहीं होगी।
मध्यप्रदेश सरकार चाहती है OBC आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट करे सुनवाई
मध्यप्रदेश सरकार चाहती है कि OBC के सभी मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट करे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के प्रकरण में 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण को संवैधानिक करार दिया है। मध्यप्रदेश सरकार ने पिछड़े वर्ग की 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को देखते हुए OBC को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया है। 27 प्रतिशत आरक्षण की वैधानिकता को जांचने का अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट को ही है। इस आधार पर मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिका दायर की हैं।
सुप्रीम कोर्ट में एक साथ होगी सभी मामलों की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर याचिकाओं को लेकर एक स्थगन आदेश दिया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में OCB मामलों की सुनवाई पर रोक लगा दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में लिखा है कि ओबीसी के 27 परसेंट कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई है, इसलिए उक्त समस्त प्रकरणों की सुनवाई प्रथक-प्रथक ना करके एक साथ की जाएगी।
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मेरिट लिस्ट नहीं होगी जारी
वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि याचिका में 16 जुलाई 2024 को हॉल अभ्यर्थियों की मेरिट लिस्ट डिसक्लोज न करने पर 50 हजार की शासन पर कॉस्ट लगाई गई है। तब हाईकोर्ट ने कहा कि यदि हॉल अभ्यर्थियों की मेरिट डिस्क्लोज कर दी जाती है तो हाईकोर्ट में मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी। इसलिए जुर्माने के बावजूद हाईकोर्ट ने मेरिट लिस्ट डिस्क्लोज करने के तर्क को कोई तवज्जो नहीं दी।