हाइलाइट्स
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केंद्र सरकार को नोटिस
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नए क्रिमिनल कानून पर नोटिस
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मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
New Criminal Law: तीन नए क्रिमिनल कानूनों को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस थमा दिया है। 4 दिन में सरकार से जवाब मांगा है। तमिलनाडु की DMK सरकार ने इन कानूनों को अधिकारातीत और असंवैधानिक बताने की याचिका लगाई थी। इसी के जवाब में मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
इस बेंच ने की सुनवाई
DMK के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी आर. एस. भारती की ओर से दाखिल याचिका पर जस्टिस एस. एस. सुंदर और एन. सेंथिल कुमार की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने सुनवाई के बाद केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा।
याचिका में क्या कहा गया ?
DMK की याचिका में लिखा है कि सरकार ने तीनों बिल पेश किए और बिना सार्थक चर्चा के इन बिलों को संसद में पास करा दिया। बिना किसी ठोस बदलाव के सिर्फ सेक्शंस की अदला-बदली करना गैर-जरूरी था। इससे मौजूदा प्रावधानों की व्याख्या करने में परेशानी का सामना करना होगा।
‘कानूनों में बदलाव का नहीं था मकसद’
याचिका में है कि सेक्शंस की अदला-बदली करने से जज, वकीलों, न्यायपालक अथॉरिटीज और जनता के लिए नए प्रावधानों को पुराने प्रावधानों से मिलाना काफी मुश्किल होगा। ऐसा लगता है ये एक्सरसाइज सिर्फ कानूनों के नामों को संस्कृतनिष्ठ करने के लिए की गई है। इसका मकसद कानूनों में बदलाव करना नहीं था।
सिर्फ सत्ताधारी पार्टी ने लागू किया कानून
DMK सरकार की याचिका में लिखा है कि सरकार ये दावा नहीं कर सकती है कि ये संसद की कार्यवाही में हुआ है। नए कानूनों को सिर्फ संसद के एक धड़े यानी सत्ताधारी पार्टी और उसकी सहयोगी पार्टियों ने लागू किया था। इसमें विपक्ष की पार्टी शामिल नहीं थीं।
एक्ट्स का नाम हिंदी या संस्कृत में लिखना संविधान के आर्टिकल 348 का उल्लंघन है। इस आर्टिकल में साफ कहा गया है कि संसद के किसी भी सदन में पेश होने वाले सभी बिलों के आधिकारिक टेक्स्ट अंग्रेजी में ही होंगे।
1 जुलाई से लागू हुए हैं तीन नए कानून
देश में 1 जुलाई से 3 नए कानून लागू हुए हैं। भारतीय सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नाम से नए कानून लागू हुए हैं। इन्होंने इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) की जगह ली है।
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ये हैं बड़े बदलाव
नए कानूनों के मुताबिक आपराधिक मामलों में फैसला सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के अंदर आना चाहिए और पहली सुनवाई के 60 दिनों अंदर आरोप तय किए जाने चाहिए।
बलात्कार पीड़ितों का बयान एक महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी। इन केसों में मेडिकल रिपोर्ट 7 दिनों के अंदर आनी चाहिए।
ऑर्गनाइज्ड क्राइम और आतंकवाद को परिभाषित किया गया है। राजद्रोह की जगह देशद्रोह लिखा-पढ़ा जाएगा। सभी तलाशी और जब्ती की वीडियो रिकॉर्डिंग जरूरी होगी।