Amritpal Singh Taking Oath: पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट पर भारी वोटों से जीत दर्ज करने वाले खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण की। उनके साथ जम्मू-कश्मीर के बारामूला सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतने वाले अब्दुल रशीद ने भी शपथ ली।
पंजाब में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में अमृतपाल सिंह पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) लगाया हुआ था, जिसके कारण वह असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर में टेरर फंडिंग मामले में गैर-कानूनी गतिविधि अधिकनियम के तहत इंजीनियर अब्दूल रशीद दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। इन दोनों सांसदों को लोकसभा सदस्य की शपथ दिलाने के लिए अदालत के निर्देश पर पैरोल मिली है।
कार्यवाही में कैसे लेंगे हिस्सा
दोनों निर्दलीय सांसदों के चुनाव जीतने और लोकसभा सदस्यता की शपथ के बाद अब सवाल यह है कि यह दोनों सांसद लोकसभा की कार्यवाही में कैसे भाग लेंगे। साथ ही दोनों लोकसभा में वोटिंग में कैसे हिस्सा लेंगे।
इसको लेकर पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी अचारी का कहना है कि अगर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया गया है, तो वह चुनाव लड़ करता है और अनुमति मिलने के बाद सदन की कार्यवाही में हिस्सा भी ले सकता है।
सदन के अंदर जाने के बाद वह व्यक्ति सदन को संबोधिक भी कर सकता है। मगर शपथ ग्रहण समारोह या संसद के सत्र में शामिल होने के लिए उन्हें बार-बार अदालत का रुख करना होगा।
अब अमृतपाल सिंह और अब्दुल रशीद को सदन की कार्यवाही में शामिल होने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा और सत्र में शामिल होने की अनुमति मांगनी होगी। इसके बाद यह पूरी तरह के अदालत पर निर्भर करता है कि वह परमिशन देती है या नहीं।
अमृतपाल- रशीद से पहले ही हुआ है ऐसा
पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से सांसद अमृतपाल सिंह और जम्मू-कश्मीर के बारामूला सीट से चुनाव जीतने वाले अब्दूल रशीद का यह मामला नया नहीं है। इससे पहले 2021 में अखिल गोगोई के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था की गई थी।
गोगोई के जेल में रहने के बावजूद उन्हें असम की विधानसभा के सदस्य के रूप में शपथ दिलाई गई थी। वहीं, दूसरा उदाहरण 1977 आपातकाल के दौरान का है। उस समय जेल में बंद जॉर्ज फर्नांडिस की जीत हुई थी और उन्हें शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए एक दिन पहले जेल से रिहा कर दिया गया था।
60 दिन के भीतर सदन में होना होगा शामिल
बता दें कि इससे पहले भी नेताओं को शपथ लेने के लिए अस्थायी पैरोल मुहैया करवाई जाती रही है। जेल में बंद सांसद को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने में असमर्थता की घोषणा करते हुए अध्यक्ष को लिखित में सूचित करना जरूरी होता है।
यह इसलिए काफी जरूरी होता है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 101 (4) में साफ लिखा है कि अगर कोई सांसद 60 दिन से ज्यादा सभी बैठकों में शामिल नहीं होता है तो उसी सीट खाली हो जाती है।
अब ऐसे में अगर जेल में बंद दोनों सांसद अगर किसी संसद सत्र में भाग लेना या संसद में चर्चा या फिर किसी मामले में मतदान का उपयोग करना चाहते हैं तो उन्हें पहले अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा।
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