हाइलाइट्स
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बिजली की बकाया राशि से जुड़ा है मामला
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अपना पॉवर दिखाने की गई फर्जी एफआईआर
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हाईकोर्ट ने सीजेएम को दिखाया आईना
CJM filed fake FIR: हाईकोर्ट ने एक सीजेएम को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। मामला सीजेएम की शक्ति दिखाने के लिए सरकारी अधिकारियों पर धोखाधड़ी की फर्जी और बेबुनियाद आरोप लगाकर एफआईआर करने से जुड़ा हुआ है। जिस पर हाईकोर्ट ने एफआईआर को खारिज करते हुए न्यायिक अधिकारी के आचरण पर कड़ी टिप्पणी की है।
बिजली मीटर के नाम ट्रांसफर से जुड़ा है मामला
बांदा (UP) के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भगवानदास गुप्ता (Banda CJM Bhagwandas Gupta) ने लखनऊ के एक इलाके में वंदना पाठक नाम की महिला से एक मकान खरीदा था। खरीद के बाद, जब सीजेएम गुप्ता ने बिजली खाते को अपने नाम पर बदलने के लिए आवेदन किया, तो उन्हें स्थानीय बिजली सबस्टेशन के एसडीओ द्वारा सूचित किया गया कि बिजली कनेक्शन पर 166,916 रुपये का बिल बकाया है। बिना इसे क्लीयर किये वंदना पाठक के नाम से बिजली कनेक्शन का मीटर ट्रांसफर नहीं हो सकता था।
करीब 11 साल पुराना है मामला
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ये मामला करीब 11 साल पुराना है। वंदना पाठक के नाम से बिजली कनेक्शन के बिजली मीटर पर जब रिकवरी निकली तो इससे क्षुब्ध होकर सीजेएम भगवानदास गुप्ता (Banda CJM Bhagwandas Gupta) ने अगस्त 2013 में लखनऊ में अतिरिक्त सिविल जज के समक्ष वंदना पाठक (घर की पिछली मालकिन), उनके पति और बिजली विभाग के कई अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी और अन्य आरोपों के तहत धारा 420, 464, 467, 468, 504, 506 आईपीसी (CJM filed fake FIR) के तहत शिकायत दर्ज कराई। जबकि बिजली कंपनी के अधिकारियों ने सिर्फ बकाया राशि की जानकारी दी थी। सीजेएम और महिला के बीच संपत्ति के लेनदेन में उनकी कोई भागीदारी ही नहीं थी।
हर जगह सीजेएम को मिली हार
इलाहबाद हाईकोर्ट की जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ में चली सुनवाई के दौरान ये तथ्य सामने आया कि लखनऊ में अतिरिक्त सिविल जज ने बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कोई ठोस मामला नहीं पाया। जिसके बाद इस मामले को खत्म कर दिया गया।
सीजेएम गुप्ता पहले लखनऊ और उसके बाद जिला उपभोक्ता फोरम लखनऊ में कानूनी लड़ाई हारे। उन्हें बिजली लोकपाल से भी राहत नहीं मिली।
FIR करवाने पुलिस तक से सांठगांठ
लाइव लॉ में प्रकाशित खबर के अनुसार हाईकोर्ट ने कहा कि (Allahabad High Court’s strong comment on CJM) बांदा के सीजेएम रहते हुए भगवानदास गुप्ता इस स्तर तक गिर गए कि उन्होंने बांदा में एक एफआईआर दर्ज करने के लिए बांदा कोतवाली पुलिस स्टेशन में एसआई के साथ सांठगांठ शुरू कर दी। हाईकोर्ट ने कहा कि जब सीजेएम गुप्ता लखनऊ में अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं रहे, तो उन्होंने “एक फर्जी कहानी गढ़ने” का फैसला किया और “सीजेएम, बांदा के रूप में अपनी कुर्सी और पद की नीलामी” (Unbecoming of a Judge He Auctioned His Dignity) करके, वे बांदा में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ धारा 406, 409, 419, 420, 464, 467, 468, 471, 386 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज (CJM filed fake FIR) करने में कामयाब रहे।
एसआईटी की जांच में ये आया सामने
मामले की सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया। अपनी रिपोर्ट में, एसआईटी ने पाया कि एफआईआर (CJM filed fake FIR) में आरोपित बिजली विभाग के अधिकारियों (रिश्वत मांगने) के खिलाफ कोई अपराध नहीं किया गया था। आरोपी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ़ लगाया गया आरोप झूठा, प्रेरित और उद्देश्यपूर्ण है, और सभी संबंधित गवाहों ने अपने-अपने बयानों में सीजेएम बांदा पर उन पर दबाव डालने का स्पष्ट आरोप लगाया है।
घुटने पर टेकते देखना चाहते थे गुप्ता
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ ने कहा कि (Allahabad High Court’s strong comment on CJM) भगवानदास गुप्ता (Banda CJM Bhagwandas Gupta) चाहते थे कि उन्हें यानी बिजली विभाग के अधिकारियों को “सीजेएम की शक्ति और स्थिति को समझाया जा सके।” कोर्ट ने अपने 25 पन्नों के आदेश में कहा, “ये सरकारी कर्मचारी (याचिकाकर्ता) बिजली विभाग के हैं, वे न तो उनके हित में काम कर रहे थे और न ही उनके इशारे पर नाच रहे थे, इसलिए फर्जी और बेबुनियाद आरोप लगाने के बाद उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाकर प्रतिवादी नंबर 4 उन्हें आपने सामने घुटने टेकते देखना चाहता है।”
बेंच की ये टिप्पणी आपको जरुर पढ़ना चाहिए
बेंच ने कहा “एक न्यायाधीश में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण गुण उसकी ईमानदारी है। न्यायपालिका में ईमानदारी की आवश्यकता अन्य संस्थाओं की तुलना में बहुत अधिक है। न्यायपालिका एक ऐसी संस्था है जिसकी नींव ईमानदारी, निष्पक्षता और उच्च गुणवत्ता की ईमानदारी पर आधारित है। न्यायाधीशों को यह याद रखना चाहिए कि वे केवल एक कर्मचारी नहीं हैं बल्कि वे एक उच्च सार्वजनिक पद पर हैं। एक न्यायाधीश से अपेक्षित आचरण का मानक एक सामान्य व्यक्ति से कहीं अधिक है।”
डिस्ट्रिक्ट जज की सहमति के बिना जज नहीं कर सकेंगे FIR!
इसे प्रकरण को लेकर इलाहबाद हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश दिया। अधिकारियों पर दर्ज फर्जी एफआईआर रद्द (CJM filed fake FIR) करने का आदेश तो दिया ही। साथ ही हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि भविष्य में यदि कोई न्यायिक अधिकारी या न्यायाधीश किसी एफआईआर में अपनी व्यक्तिगत हैसियत से प्रथम शिकायतकर्ता बनना चाहता है तो उसे अपने संबंधित जिला न्यायाधीश को विश्वास में लेना होगा और जिला न्यायाधीश की सहमति के बाद ही वह किसी भी एफआईआर का शिकायतकर्ता बन सकता है (हत्या, आत्महत्या, बलात्कार या अन्य यौन अपराध, दहेज हत्या, डकैती जैसे गंभीर और संगीन प्रकृति के मामले को छोड़कर)। इसके अलावा, एफआईआर को रद्द करते हुए न्यायालय ने न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह फैसले की प्रति डॉ. भगवान दास गुप्ता, सीजेएम, बांदा के डोजियर/सर्विस रिकॉर्ड में सुरक्षित रखें।