हाइलाइट्स
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एनजीओ में बच्चों की मौत को लेकर याचिका
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दोनों सरकारों के वकीलों से जांच के लिए कहा
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घरौंदा में स्पेस कम है, खर्च का रिकॉर्ड गायब
Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ के घरौंदा सेंटरों की हालत और अव्यवस्था को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका की सुनवाई की गई।
इसके बाद घरौंदा सेंटर की जांच हाई कोर्ट से नियुक्त कोर्ट कमिश्नरों ने की, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट सौंपी है। वहीं हाई कोर्ट (Bilaspur High Court) के नोटिस पर राज्य सरकार की ओर से समाज कल्याण विभाग के सचिव और संचालक की ओर से दो शपथ पत्र दिए गए हैं।
कोर्ट कमिश्नरों ने कहा कि दोनों शपथ पत्र में दी गई जानकारी में ही कई विसंगतियां है। ये घरौंदा सेंटर की सही तस्वीर नहीं दर्शाती है। अकेले बिलासपुर के सेंटर के लिए सरकार ने एक साल में 53 लाख रुपए दिए हैं।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रजनी दुबे की बेंच ने राज्य की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल और केंद्र की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल को मौके पर जाकर जांच रिपोर्ट देने को कहा है। कोर्ट ने बिलासपुर (Bilaspur High Court) कलेक्टर को दोनों की मदद करने को कहा है।
जांच में ये आया सामने
जांच के दौरान महिला एवं पुरुष केंद्र में बदलने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं थे। दोनों केंद्रों में फिजियोथेरेपी कक्ष भी नहीं थी। प्राथमिक उपचार के लिए अलग से कमरा नहीं था।
लाइब्रेरी भी नहीं थी। जांच के दौरान वहां रहने वालों को रात का खाना नहीं दिया गया, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कैटरर्स की ओर से खाना पहुंचाया गया था।
टीम के कहने पर शाम का नाश्ता और चाय दी गई। बिलासपुर (Bilaspur High Court) में चल रहे सेंटर पर विभाग का जवाब है कि अपरिहार्य कारणों के चलते केंद्र बदला है, राज्य कार्यालय को सूचना उपलब्ध नहीं हो पाई।
वर्तमान में महिलाओं का केंद्र डीपूपारा व पुरुषों का केंद्र तोरवा में संचालित किया जा रहा है। वर्तमान में फिजियोथेरेपी कक्ष उपलब्ध है। दोनों केंद्रों में देखभाल के लिए 3-3 केयर टेकर नियुक्त हैं।
मृतकों की पीएम रिपोर्ट नहीं मिली
जांच रिपोर्ट (Bilaspur High Court) में रायपुर के दोनों केंद्रों के निरीक्षण के बाद दी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि महिला घरौंदा केंद्र में 7 महिलाएं और 3 पुरुष की मौत हुई है।
3 मृतक पुरुषों की पीएम रिपोर्ट नहीं मिली है। कई ऐसे दिव्यांग हैं, जिनके माता-पिता या अन्य संबंधियों का पता नहीं है।
मृतक के शरीर के अंगों के दुरुपयोग को रोकने के लिए अंतिम संस्कार से पहले सरकारी डॉक्टर से प्रमाणित करना जरूरी किया जाए, जिससे सुनिश्चित हो कि अंग यथावत हैं।
एक ही कैंपस में महिला-पुरुष भवन
इसी तरह एक ही कैंपस में महिलाओं और पुरुषों के केंद्र हैं। दोनों भवन सटे हुए किराए के भवनों में चल रहे हैं। भोजन करने की जगह और खेल का मैदान एक ही है।
दोनों केंद्रों में अलग-अलग किचन और स्टोर रूम था। आधार कार्ड बनाने में कठिनाई हो रही है, जिस कारण उनके यूनिक डिसेबिलिटी आईडी नहीं बन सके हैं।
कार्ड बनाने की प्रकिया लंबित
जानकारी सामने आई है कि चार मृतकों की पीएम रिपोर्ट (Bilaspur High Court) संबंधित अस्पताल से प्राप्त करने के बाद केंद्र में है। 25 पुरुषों में से 10 का यूडीआईडी बनाया जा चुका है।
15 का कार्ड बनाने की प्रक्रिया लंबित है। 33 महिलाओं में से 13 के यूडीआईडी बन गए हैं, 4 का पंजीयन कराया गया है। 16 के पहचान पत्र नहीं होने से आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया लंबित है।
पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रोजेक्ट का संचालन किया जा रहा है। महिलाओं और पुरुषों को अलग- अलग खाना खिलाया जाता है।
एक ही मैदान होने के कारण अलग अलग समय में अवसर दिया जाता है।
घरौंदा में इतना स्पैस जरूरी
बिलासपुर (Bilaspur High Court) के घरौंदा सेंटर के निरीक्षण के बाद कोर्ट कमिश्नर अपूर्व त्रिपाठी व शिवाली दुबे ने रिपोर्ट दी। इस रिपोर्ट में कई खामियों और अव्यवस्थाओं की बात कही गई है।
जैसे कि सेंटर का पता ही गलत दिया गया था। नए पते की जानकारी राज्य कार्यालय को ही नहीं थी। नियमों के अनुसार 10 हजार स्क्वेयर फीट की जगह जरूरी है, डीपूपारा में 900 स्क्वेयर फीट में बने मकान में महिलाओं के लिए केंद्र संचालित है।
यहां रसोई सेवा उपलब्ध नहीं थी, बाहर से खाना मंगवाया जाता है, जिससे यहां रहने वालों को समय पर खाना मिलने का सवाल ही नहीं है।
खर्च को लेकर नहीं बना कोई रजिस्टर
बताया गया महिलाओं के केंद्र में खेल के लिए कोई सामान उपलब्ध नहीं था, जबकि पुरुषों के केंद्र में शारीरिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी।
आवंटित अनुदान के उपयोग की जांच (Bilaspur High Court) करने के लिए मांगने पर रजिस्टर नहीं दिया गया। उपस्थिति पंजी की जांच करने पर पता चला कि उसी दिन रजिस्टर तैयार किया गया था।
17 दिनों के लिए किए गए हस्ताक्षर भी थे। बताया गया स्पीच थेरेपी के लिए डॉ. अग्रवाल सेंटर का दौरा नहीं करते, कभी- कभी उनके सहायक आते हैं।
रजिस्टर को उनके क्लीनिक पूरे माह के हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है।
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ये है पूरा मामला
छत्तीसगढ़ (Bilaspur High Court) के गैर सरकारी संगठनों (NGO) में बच्चों की मौत को लेकर 2020 में रायपुर की संस्था कोपल वाणी चाइल्ड वेलफेयर ने जनहित याचिका लगाई थी।
इसमें कहा था राज्य शासन द्वारा समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत निराश्रित बच्चों के लिए काम कर रही सामाजिक संस्थाओं को अनुदान दिया जाता है।
उनके लिए अलग से घरौंदा योजना के तहत 4 संस्थाओं को 9.76 करोड़ रुपए दिए गए है। याचिका में आरोप लगाया था कि 2014 से अब तक अलग-अलग एनजीओ में भूख से 8 बच्चों की मौत हो चुकी है।
इस पर कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार समेत अन्य से जवाब मांगा था।