हाइलाइट्स
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15वीं सदी में इस तरह से रहते थे ब्राह्मण
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पालीवाल आवास के नाम से जाने जाते थे ये घर
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सदियों पहले ऐसी होती थी मकान की डिजाइन
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उस दौर की उम्दा कारीगरी का उदाहरण थे ये घर
Parshuram Jayanti 2024: आज (10 मई) को ब्राह्मण समाज के आराध्य देव भगवान परशुराम (Parshuram Jayanti 2024) की जयंती है।
पूरे देशभर में ब्राह्मण समाज इनकी जंयती को बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है।
इस अवसर पर आपको ब्राह्मणों (Parshuram Jayanti 2024) से जुड़े एक रोचक आवास के बारे में बताते हैं।
भोपाल के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पालीवाल आवास स्थित है। ये राजस्थान के जैसलमेर पर आधारित है। ये एक तीन मंजिल घर है। यहां पर ये दर्शाने का प्रयास किया गया है कि 15वीं सदी में आदि-गौड़ ब्राह्मण (Parshuram Jayanti 2024) किस तरह के घरों में रहते थे।
क्या है पालीवाल का इतिहास?
आदि-गौड़ ब्राह्मणों का एक समुदाय बहुत समय तक पालीवाल जिले में रहा, जिस वजह से उन्हें पालीवाल (Parshuram Jayanti 2024) के नाम से जाना जाता है।
13वीं शताब्दी में ये समुदाय ये जगह छोड़कर पश्चिम की तरफ जैसलमेर की भाटी राज्य क्षेत्रों में चला गया था। पहले आदि-गौड़ ब्राह्मण राज्य की दक्षिण पूर्वी सीमा में रहे, उसके बाद आंतरिक क्षेत्र में फैल गए।
15वीं शताब्दी में इन संरचनाओं का विकास हुआ।
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आदि-गौड़ ब्राह्मणों ने की 84 गांवों की स्थापना
इस समूह ने 84 गांवों की स्थापना की जो कि खेरा नाम से जाने जाते हैं। आपको बता दें कि जैसलमेर पीले पत्थरों पर नक्काशीयुक्त आवासों की एक भव्यता को प्रदर्शित करने वाला सुंदर शहर है।
भोपाल में बना ये पालीवाल आवास राजस्थान Parshuram Jayanti 2024) से लाए गए पीले पत्थरों, मिटी और लकड़ी से बना है।
इस घर में खूबसूरत जालीदार खिड़कियां हैं, जिनमें उच्च कलात्मक श्रेणी के शानदार और आकर्षक खंबे हैं।
ये आवास पीले पत्थरों से बना हुआ है। इस वजह से इसे स्वर्णनगरी के नाम से जाना जाता है।
ये आवास 3 मंजिल है, जिसके हर फ्लोर पर दो-दो कमरे बने हुए हैं। इन कमरों में खुली छत और बालकनी गोखड़ा होती है। इन कमरों में लोग आराम करते थे।
आपदाओं से बचने के लिए यहां छुपते थे ब्राह्मण
इस घर में ग्राउंड फ्लोर पर एक तलघर बना हुआ है। यहां पर लोग भूकंप, दुश्मनों द्वारा आक्रमण या फिर किसी भी तरह की आपदा से बचने के लिए छुपते थे।
पीले पत्थरों से बना आवास
पालीवाल आवास, पीले पत्थरों से बनाया गया है। ये पत्थर सिर्फ राजस्थान में पाए जाते हैं। इस आवास को बनाने के लिए इन पत्थरों को यहां लाया गया था।
केर लकड़ी से बनी छत
पालीवाल आवास की छत में केर लकड़ी का प्रयोग किया गया है। ये लकड़ी सिर्फ राजस्थान में पाई जाती है।
कहां से हुई गौड़ समाज की उत्पत्ति?
गौड़ समाज की उत्पत्ति बंगाल-बिहार के प्राचीन गौड़ नगर से हुई थी। गौड़ नगर लंबे समय तक बिहार और बंगाल की राजधानी था।
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