हाइलाइट्स
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छत्तीसगढ़ के बस्तर में पहले फेज में वोटिंग
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कांग्रेस और बीजेपी के बीच है कांटे की टक्क
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नक्सलवाद से प्रभावित है राज्य का ये इलाका
छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटों में से बस्तर लोकसभा सीट (Bastar Lok Sabha Seat) पर सबकी नजर है. यहां पहले फेज में 19 अप्रैल को वोटिंग होनी है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इस सीट में जीत हासिल करने के लिए अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर ली है.
कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक कवासी लखमा को टिकट दिया है, वहीं बीजेपी ने महेश कश्यप को मैदान पर उतारा है. साल 1952 में अस्तित्व में आई यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है.
कितने हैं मतदाता
बस्तर लोकसभा क्षेत्र (Bastar Lok Sabha Seat) में 13 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. 7 लाख 15 हजार 672 पुरुष मतदाता तो वहीं, 6 लाख 63 हजार 509 महिला वोटर्स हैं.
बस्तर लोकसभा क्षेत्र कुल आठ विधानसभाओं से मिलकर बना हुआ है. इन विधानसभाओं में कोंडागांव, नारायणपुर, जगदलपुर, चित्रकोट, बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोटा क्षेत्र आते हैं.
राज्य का आदिवासी बाहुल्य इलाका है बस्तर
बस्तर लोकसभा सीट को आदिवासी बाहुल्य इलाका माना जाता है. छत्तीसगढ़ की यह लोकसभा सीट नक्सलवाद से प्रभावित है.
यहां की करीब 60 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासी है. बस्तर घने जंगलों से सराबोर इलाका है, यही कारण है कि आदिवासियों की एक बड़ी जनजाति जंगलों में भी निवास करती है.
बस्तर क्षेत्र से आने वाले लोग अपनी संस्कृति, कला, पर्व और सहज जीवन शैली के लिए देश-विदेश में मशहूर हैं. बस्तर क्षेत्र में जलप्रपात को देखने के लिए पर्यटकों का जमावड़ा भी लगा रहता है.
2014 और 2019 के चुनाव
पिछले दो लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो यहां पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबला रहा है. 2014 में बस्तर लोकसभा सीट पर भाजपा के दिनेश कश्यप ने जीत दर्ज की थी.
वहीं, 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने दीपक बैज को अपना उम्मीदवार बनाया, जिनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने बैतुराम कश्यप पर अपना दांव लगाया. 2019 में यहां से कांग्रेस की जीत हुई थी.
इस सीट पर किसका रहा दबदबा?
बस्तर लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी, 1952 से लेकर अब तक इस लोकसभा सीट पर 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं.
इस सीट को कांग्रेस अपना गढ़ बताती है. क्योंकि 1952 से लेकर 1998 तक लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी की ही जीत होती रही.
यह लोकसभा क्षेत्र 1998 में बीजेपी के पाले में चला गया, 1998 से लेकर साल 2014 तक लगातार 6 चुनावों में बीजेपी के उम्मीदवारों ने इस सीट पर अपना दबदबा कायम रखा है.
इसके बाद 2019 के चुनाव में बीजेपी को सीट से हार का सामना करना पड़ा.
शहरी मतदाताओं की संख्या कम
जातीय समीकरण की बात की जाए तो बस्तर लोकसभा सीट में आदिवासी समाज का बोलबाला रहा है.
इस सीट पर शहरी मतदाता बहुत कम है, जिनकी आबादी 15 फीसदी के करीब है.
बस्तर में मूलभूत सुविधाओं की कमी है, क्षेत्र के कई इलाके ऐसे हैं जहां सड़क, पानी, बिजली की समस्याएं आम बात है. यहां के कुछ इलाकों में नक्सलियों का दबदबा है.
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