Chanakya Neeti: नीति शास्त्र के आचार्यों की वैसे तो बहुत लंबी परंपरा है लेकिन शुक्राचार्य, आचार्य बृहस्पति, महात्मा विदुर और आचार्य चाणक्य इनमें प्रमुख हैं। आचार्य चाणक्य ने श्लोक और सूत्र दोनों रूपों में नीति शास्त्र का व्याख्यान किया है।
चाणय का कौटिल्य बनना जनहित के लिए था। उनका स्वप्न अखंड भारत बनाना था। इसी के लिए उन्होंने शत्रुओं को उन्ही की चाल से मात दी थी.आज हम चाणक्य की कुछ नीतियाँ पढ़ेगें.
दुराचारी दुरदृष्टिदुराऽऽवासी च दुर्जनः। यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्रं विनश्यति ।।
बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरे को हानि पहुंचाने वाले तथा गंदे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है।
समाने शोभते प्रीतिः राज्ञि सेवा च शोभते । वाणिज्यं व्यवहारेषु दिव्या स्त्री शोभते गृहे ।।
प्रेम व्यवहार बराबरी वाले व्यक्तियों में ही ठीक रहता है। यदि नौकरी (Chanakya Neeti) करनी ही हो तो राजा की नौकरी करनी चाहिए। कार्य अथवा व्यवसाय में सबसे अच्छा काम व्यापार करना है। इसी प्रकार उत्तम गुणों वाली स्त्री की शोभा घर में ही है।
न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चाऽपि न विश्वसेत्। कदाचित् कुपितं मित्रं सर्व गुह्यं प्रकाशयेत्।।
जो मित्र खोटा है, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए और जो मित्र है, उस पर भी अति विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा हो सकता है कि वह मित्र कभी नाराज होकर सारी गुप्त बातें प्रकट कर दे।
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्। वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ।।
जो पीठ पीछे कार्य को बिगाड़े और सामने होने पर मीठी-मीठी बातें बनाए, ऐसे मित्र को उस घड़े (Chanakya Neeti) के समान त्याग देना चाहिए जिसके मुंह पर तो दूध भरा हुआ है परंतु अंदर विष हो।