हाइलाइट्स
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Electoral Bonds पर फैसला आज
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2018 में हुई थी शुरुआत
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पूरा मामला है क्या
Electoral Bonds Verdict: इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जा रहा है। दो विकल्प रखे गए हैं एक चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का है और बाकी जस्टिस संजीव खन्ना का और दोनों ही एक निर्णय पर पहुंचे हैं।
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार, इससे मतदान के लिए सही चयन होता है। राजनीतिक पार्टियों को बड़ा चंदा गोपनीय रखना असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड स्कीम की कानूनी वैधता से जुड़े मामले में आज अपना फैसला सुनाया । पूरा मामला राजनीतिक दलों को गुमनाम तरीके से चंदा देने की अनुमति वाले इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से जुड़ा है। जिसकी कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वोच्च कोर्ट का फैसला आज आएगा।
Supreme Court says it has delivered a unanimous verdict on a batch of pleas challenging the legal validity of the Central government’s Electoral Bond scheme which allows for anonymous funding to political parties. pic.twitter.com/HkBIrDJr9O
— ANI (@ANI) February 15, 2024
इस मामले पांच जजों की संविधान पीठ ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग (ECI) से योजना के तहत बेचे गए चुनावी बॉन्ड के संबंध में 30 सितंबर, 2023 तक डेटा जमा करने को कहा था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
– चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक।
– चुनावी बॉन्ड स्कीम RTI का उल्लंघन है।
– इनकम टैक्स एक्ट में 2017 में किया गया बदलाव (बड़े चंदे को भी गोपनीय रखना) असंवैधानिक है।
– जनप्रतिनिधित्व कानून में 2017 में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है।
– कंपनी एक्ट में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है।
– लेन-देन के उद्देश्य से दिए गए चंदे की जानकारी भी इन संशोधनों के चलते छिपती है।
– SBI सभी पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को दे।
– चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे।
– अभी जो बांड कैश नहीं हुए राजनीतिक दल उसे बैंक को वापस करे।
क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
इस पर सुनवाई के दौरान पूर्व CJI एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए सुनवाई को फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।
क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई। इसे लागू करने के पीछे मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं।
भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं।
किसने दायर की याचिकाएं?
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि चुनावी बांड के जरिए हुई गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है और वोटर्स के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। उनका दावा है कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से दान देने की अनुमति दी गई है।
कोर्ट ने पिछले साल 31 अक्टूबर को इन पर सुनवाई शुरू की थी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।