आइजोल। भूमिगत नेता से मिजोरम के मुख्यमंत्री बनने वाले मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के अध्यक्ष जोरमथांगा 1998 और 2003 के प्रदर्शन को दोहराने में विफल रहे जब उन्होंने अपनी पार्टी को लगातार जीत दिलाई और सरकार के शीर्ष पर पहुंचे थे। मिजोरम में 2018 से सत्ता पर काबिज एमएनएफ को पांच साल बाद हार का सामना करना पड़ा।
वर्तमान मुख्यमंत्री जोरमथांगा (79) को इस बार आइजोल पूर्व-प्रथम निर्वाचन क्षेत्र में जेडपीएम उम्मीदवार के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
10 सीटों पर जीती एमएनएफ
राज्य की 40 सदस्यीय विधानसभा में 2018 में 26 सीट जीतने वाले एमएनएफ को सोमवार को आए विधानसभा चुनाव के नतीजों में महज 10 सीट से संतोष करना पड़ा। चार साल पहले पंजीकृत हुई जोरम पीपल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने 27 सीट जीतकर सबको चौंका दिया।
2003 में बने थे सीएम
पूर्व भूमिगत एमएनएफ प्रमुख लालडेंगा के करीबी सहयोगी ने 1998 और 2003 में पार्टी को जीत दिलाई और वह राज्य के मुख्यमंत्री बने। 2008 के चुनावों में, जोरमथांगा दो निर्वाचन क्षेत्रों चम्फाई उत्तर और चम्फाई दक्षिण से कांग्रेस उम्मीदवारों से हार गए थे।
1979 से लड़ रहे चुनाव
जोरमथांगा का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा और वह 1979 से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। जोरमथंगा 1966 में अपनी स्नातक परीक्षा देने के बाद भूमिगत एमएनएफ में शामिल हो गए। तब संगठन का नेतृत्व लालडेंगा कर रहे थे। अन्य एमएनएफ कैडरों के साथ जंगल में रहने के दौरान उन्हें पता चला कि उन्होंने अंग्रेजी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है।
तीन साल बाद उन्हें लालडेंगा का सचिव नियुक्त किया गया और 1979 में वह एमएनएफ के उपाध्यक्ष बने। उसी वर्ष, उन्हें ‘निर्वासित मिजोरम सरकार’ का उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। जब एमएनएफ भारत सरकार के साथ बातचीत कर रहा था और शांति वार्ता में सक्रिय रूप से शामिल था तब लालडेंगा के साथ जोरमथांगा पाकिस्तान और यूरोप दौरे पर गए।
एमएनएफ और केंद्र के बीच 30 जून 1986 को शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद उन्हें छह महीने के लिए लालडेंगा के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया गया।
1987 में हुआ था पहला चुनाव
फरवरी 1987 में मिजोरम विधानसभा के लिए पहला चुनाव हुआ और जोरमथांगा चम्फाई निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए। कई एमएनएफ विधायकों के दलबदल के कारण 1988 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। फेफड़ों के कैंसर के कारण 7 जुलाई 1990 को लालडेंगा की मृत्यु के बाद जोरमथांगा को एमएनएफ का अध्यक्ष चुना गया, जिस पद पर वह अब भी काबिज हैं।
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