बीजापुर से रजत वाजपेयी की रिपोर्ट
CG Election 2023 Live Update: नक्सल प्रभावित क्षेत्र बीजापुर में वोटिंग का जुनून इस कदर दिखाई दे रहा है कि उनके हौसलों के आगे नक्सली भी पस्त पड़ गए हैं। क्षेत्र एक एक गांव चिहका के वोटर्स ने अपील की है, वे वोट जरूर डालेंगे, लेकिन उन्हें स्याही न लगाएं।
यहां के गांव वाले विकास की धारा में शामिल होना चाहते हैं। नक्सलियों की दहशत के बीच एक यही मौका है, जो उनके जीवन को संवार सकता है।
सिविल ड्रेस में नक्सली पहुंचे केंद्र
हमारे रिपोर्टर रजत वाजपेयी के अनुसार, चिहका में बड़ी संख्या में नक्सली भी सिविल ड्रेस में पहुंचे हैं। इसे लेकर गांव वालों के मन में एक तरफ थोड़ा डर भी है, तो वहीं अपने गांव की तस्वीर बदलने का हौसला भी उनमें एक जुनून पैदा किए हुए है।
जिसके चलते गांव वालों ने बिना स्याही लगवाए वोटिंग करने की अपील की है। ताकि, चुनाव के बाद भी नक्सली उन्हें चिह्नित न कर पाएं.
सरकार को पहले ही रखना था ये विकल्प
सीजी में जिन क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव ज्यादा है वहां पर सुबह 8 बजे से 5 बजे तक वोटिंग का समय निर्धारित है। जिसमें महिलाएं भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं।
लेकिन विचारणीय यह है कि इन क्षेत्रों में सरकार को पहले ही कुछ इसी तरह के इंतजाम और विकल्प अपनाने चाहिए थे ताकि जनता को वोटिंग के लिए ज्यादा से ज्यादा जागरुक और उत्साहित किया जा सके। नक्सलियों के खतरें से बचने के लिए संभवत: ऐसा पहली बार हो रहा है जब बिना स्याही के वोटिंग करवाने की अपील हो रही है।
पीठासीन से चिन्ह न लगाने के अपील
बीजापुर में वोटर्स ने पीठासीन अधिकारी से वोटिंग के दौरान स्याही न लगाने की अपील है। बीजापुर जिले के अति संवेदनशील मतदान केंद्र चिहका के वोटरों ने पीठासीन से अपील करके कहा है कि वे वोट डालेंगे लेकिन उन्हें स्याही न लगाई जाए।
बता दें कि यहां पर सिविल ड्रेस में नक्सली पहुंचे मतदान करने थे। नक्सलियों की मौजूदगी में ग्रामीणों ने मतदान किया। खबर लिखने तक यहां पर 937 में से 250 वोटर वोटिंग कर चुके थे।
5 साल में पार की नदी
दरअसल यह मतदान केंद्र 5 साल में एक बार ही गुलजार होता है। कारण यह कि इंद्रावती नदी के उस पार रहने वाले लोगों को नक्सली इस पार नहीं आने देते।
इस बार सभी बैरियर तोड़ते हुए मतदाताओं ने न केवल नदी पार की, बल्कि मताधिकार का प्रयोग भी किया। बस्तर में यह काफी बड़ा बदलाव कहा जा सकता है।
आदिवासी बदलेंगे लोकतंत्र की तस्वीर
सलवा जुडूम आंदोलन के बाद से यह स्थिति निर्मित हुई है जब इस पूरे इलाके के लोग दुनिया से कट गए हैं। डरते-डरते ही सही पर मतदान कर रहे हैं।
आदिवासियों की यह तस्वीर स्वस्थ लोकतंत्र के लिए काफी सुखद मानी जाएगी।
क्यों खास है अबूझमाड़
अबूझमाड़ एक पहाड़ी वन क्षेत्र है, जो छत्तीसगढ़ में 4,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो नारायणपुर जिले, बीजापुर जिले और दंतेवाड़ा जिले को कवर करता है। यह गोंड, मुरिया, अबुज मारिया (अबूझमाड़) और हलबास सहित भारत की स्वदेशी जनजातियों का घर है। इसे “नक्सलियों का स्वर्ग” भी कहा जाता है।
बता दें, चिहका गांव को “अबूझमाड़ का गेटवे” कहा जाता है। इस गांव के बाद अबूझमाड़ सघन वनक्षेत्र शुरू हो जाता है।
1.40 करोड़ की सिर्फ स्याही
प्रदेश के 24 हजार 19 बूथों के लिए स्याही की 75 हजार शीशियां मंगाई गई है। इसकी लागत लगभग 1.40 करोड़ हैं। निर्वाचन अधिकारियों के अनुसार, यह अमिट स्याही 72 घंटे में भी नहीं मिटेगी।
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