MP Aaj Ka Mudda: विधायक से सांसद बनना हर नेता का सपना होता है। वो जमाना अब नहीं रहा जब राजनीति सिर्फ सेवा का जरिया होती थी। अब अगर विधायकी और सांसदी का मेवा ना मिले तो नेताजी विद्रोह का बिगुल फूंक देते हैं।
मध्यप्रदेश में गुरुवार को नामांकन वापस लेने की मियाद खत्म होने के बाद तस्वीर साफ हो गई है। कई रूठे रुलाने के लिए मैदान में डटे हैं।
बीजेपी के बागी
— बुरहानपुर से हर्षवर्धन चौहान निर्दलीय मैदान में
— निवाड़ी से कुक्कुट विकास निगम के अध्यक्ष नंदराम कुशवाहा निर्दलीय
— टीकमगढ़ से पूर्व विधायक केके श्रीवास्तव निर्दलीय
— बड़वारा से पूर्व मंत्री मोती कश्यप सपा से मैदान में
— मुरैना से रुस्तम सिंह के बेटे राकेश बसपा से ठोंक रहे हैं ताल
कांग्रेस के बागी
— भोपाल उत्तर से आरिफ अकील के भाई आमिर अकील निर्दलीय
— गोटेगांव से पूर्व विधायक शेखर चौधरी निर्दलीय
— बरगी से जयकांत सिंह निर्दलीय
— बड़नगर से राजेंद्र सिंह सोलंकी निर्दलीय
— सिहोरा से कौशल्या गोटिया निर्दलीय
— आलोट से पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू निर्दलीय
— सिवनी मालवा से पूर्व विधायक ओमप्रकाश रघुवंशी निर्दलीय
रूठे सूरमा अब ठोक रहे ताल
कुल मिलाकर दोनों तरफ से आखिरी दिन तक पर्चा वापस कराने की हर संभव कोशिश हुई। कई बड़े धुरंधरों को दोनों तरफ से मना भी लिया गया। लेकिन रूठकर सियासी फूफा बनने निकले कई सूरमा अब मैदान में हैं। खुले तौर पर बीजेपी-कांग्रेस इनकी चिंता नहीं होने का दम भर रहे हैं।
रूठे रुलाएंगे !
खुलेतौर पर भले ही पार्टियां बागियों के मैदान में होने को गंभीरता से न ले रही हों लेकिन सियासत का स्याह सच यही है कि अंतिम दम तक बागियों को साधने की कोशिश जारी रहेगी। पर्चा ना निकालने वालों को निष्क्रिय करने की रणनीति पर राजनीति आगे बढ़ेगी। जो भी पार्टी आखिरी वक्त तक नाराज़ नेताओं को मना लेगी। रूठे उसे कम रुलाएंगे।
बंसल न्यूज के सवाल
पहला सवाल—बीजेपी-कांग्रेस के रूठे क्या राजनीतिक गणित बिगाड़ पाएंगे?
दूसरा सवाल—रूठों को मनाने की कवायद क्या अभी और चलेगी?
तीसरा सवाल–चुनाव नतीजों के बाद रूठों की राजनैतिक हैसियत क्या होगी?
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