पोंगाभेज्जी से आदित्य नामदेव की रिपोर्ट। CG Elections 2023: आपने फिल्म न्यूटन तो जरूर देखी होगी,लेकिन आज हम आपको उसी से जुड़ी एक हकीकत बता रहे हैं। जहां न सड़क है और न ही बिजली।
पगडंडियों के सहारे पहाड़ियों के बीच से होते हुए जब पोंगाभेज्जी तक बंसल न्यूज़ की टीम पहुंची तो ग्रामीणों के चेहरे पर जो खुशी नजर आई। वह पहली बार मतदान की थी। हालांकि पुलिस और प्रशासन के लिए यह कतई आसान नहीं था।
पहाड़ों, पगडंडियों को पार कर पहुंची टीम
बता दें कि बंसल न्यूज़ की टीम ने सुकमा के केरलापाल से अपना सफर शुरू किया और केरलपाल थाने से बाइक में पुलिस की पूरी टीम के साथ हम उस इलाके में जा रहे थे।
जिसके बारे में हम पूरी तरह से अपरिचित थे। वहां की परिस्थितियों वहां की भौगोलिक स्थितियों से भी हम सभी अंजान थे।
शुरुआती सफर का रास्ता तो हमारी टीम को बेहद खूबसूरत लगा, लेकिन हम नहीं जानते थे कि जिस राह पर हम आगे बढ़ रहे हैं वहां रास्ता ही नहीं है।
कहीं पतली पगडंडियां तो कहीं पर रेत का ढेर, हमारे मन में भी आपकी तरह सवाल आया कि क्या इसी को विकास कहते हैं।
आसान नहीं है ‘लोकतंत्र’ का ये सफर
धीरे-धीरे हम अपना सफर आगे बढ़ा रहे थे, तभी खबर मिली कि रास्ते में आईडी लगाई गई है। तत्काल बीडीएस की टीम और स्निफर डॉग मौके पर पहुंचे और पूरे इलाके को चेक किया गया।
इसके बाद का जो मंजर था वह तो बहुत ही अलग था, अब तो पग डंडिया भी नहीं बची थीं। सामने एक बड़ा सा नाला था और उसके आगे फिर एक नाला था।
घुटने तक पानी कभी भी फिसल कर गिरने का जोखिम लेकिन जवानों के साथ हम आगे बढ़ रहे थे।
नक्सलियों की मांद है पोंगाभेज्जी
कठिन और दुरूह सफर के बाद हम पहुंच चुके थे पोंगाभेज्जी मतदान केंद्र। यही वो जगह है जहां पर कुछ महीने पहले सरपंच की हत्या की गई थी।
इसके आगे का पूरा इलाका नक्सलियों की मांद कहलाता है। आजादी के बाद पहली बार यहां विधानसभा चुनाव में मतदान केंद्र बनाया गया है।
498 मतदाता डालेंगे वोट
सुकमा जिले के पोंगाभेज्जी गांव में पहली बार 498 मतदाता वोट डालेंगे। नेशनल हाईवे पर स्थित केरलापाल गांव से पोंगाभेज्जी की दूरी 12 किलोमीटर है।
यहां सुरक्षित और सफल मतदान हो सके, इसके लिए अभी से जवानों ने कमर कस रखी है। हर दिन एरिया डोमिनेशन और सर्चिंग की जा रही है।
गांव में मतदान को लेकर उत्साह
पहाड़ियों से घिरे घने जंगल के बीच बसे ठेठ आदिवासी भी वोट पंडुम यानि इलेक्शन त्यौहार का महत्व समझ रहे हैं।
इस पूरे इलाके में जो बदलाव की बयार बह रही है, इसकी बानगी है 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली दुरदो सरिता से जब सवाल पूछा गया तो उसने यस सर कहकर जवाब दिया।
सरिता पढ़-लिख कर पुलिस में भर्ती होना चाहती है ताकि नक्सलियों का सफाया कर सके।
लोकतंत्र के पर्व में भाग ले रहे ग्रामीण
इलाके की बदल रही तस्वीर का एक और उदाहरण यह भी माना जा सकता है कि कभी वोट यानि पंडुम की स्याही दिखते ही उंगली काट देने की धमकी देने वाले माओवदियों का अब वैसा डर नहीं रहा, जैसा पहले कभी हुआ करता था।
12 किलोमीटर दूर जंगल के बीच से पगडंडियों के सहारे केरलापाल के मतदान केंद्र तक पहुंच कर वोटिंग करने की मजबूरी से निजात मिलने की खुशी भी गांव वालों के चेहरों पर देखी जा सकती है।
ये हैं ग्रामीणों की मांगे
इलाके के लोग नालों पर पुल और बच्चों के लिए स्कूल की चाहत प्रत्याशियों के सामने रख रहे हैं। जो इन मांगों को पूरा करेगा या पूरा करने का वादा करेगा, इलाके में उसके लिए सकारात्मक माहौल बन सकता है।
चुनाव के नतीजे तो 3 दिसंबर आएंगे, लेकिन एक बात तय है कि यहां के लोग अब नक्सलियों के आतंक से आजिज आ चुके हैं और इससे बाहर निकलना चाहते हैं।
ऐसी ही छटपटाहट युवा अशोक में दिखाई देती है, जिसके सरपंच पिता को माओवादियों ने कुछ समय पहले गोली मार दी थी।
नाले और नदियां लांघ कर बनाया केंद्र
इस पूरे इलाके को समझने वाले पुलिस अफसर बताते हैं कि किस तरह से नक्सलियों के अलावा दूसरी दिक्कतों का सामना जवान करते हैं।
कभी बारिश में नालों का पानी सिर के ऊपर तक बहता है, ऐसे में भला हो उस ट्रेनिंग का, जो उन्हें विपरीत स्थितियों से निपटने के लिए दी जाती है।
सीआरपीएफ के जवान तैनात
पोंगाभेज्जी से लौट रही बंसल न्यूज़ की टीम को केरलापाल पहुंचकर पता चला कि असम के डिब्रूगढ़ में तैनात सीआरपीएफ की एक कंपनी निष्पक्ष चुनाव कराने में मदद करने के लिए पहुंच चुकी है।
हालांकि गुरिल्ला जोन की गतिविधियों से यह जवान बहुत अच्छी तरह परिचित नहीं हैं, लेकिन इनका हौसला देखते ही बनता है।
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