Janna Jaruri Hai: अपने जज और मजिस्ट्रेट इन दोनों के बारे में जरूर सुना होगा। यह दोनों ही भारतीय ज्यूडिशियल सिस्टम का अभिन्य हिस्सा हैं। वहीं क्या कभी आपने इस बात पर ध्यान दिया है कि आखिर जज और मजिस्ट्रेट के बीच में अंतर क्या है?
कई लोगों होते है कंफ्यूज
देश में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जिन्हें इन दोनों के बीच के अंतर के बारे में पता है। कई बार लोग इन दोनों पदनामों को लेकर काफी कंफ्यूज रहते हैं। अगर आप इन दोनों के बीच के अंतर के बारे में जानना चाहते हैं।
ऐसे में यह आर्टिकल आपके लिए खास है। आज हम आपको इन्हीं दोनों के बीच के अंतर के बारे में बताने जा रहे हैं।
जानिए दोनों का मतलब
बता दें कि जज एक एंग्लो फ्रेंच शब्द जुगर से आया है। इसका अर्थ किसी विषय पर राय बनाना है। वहीं मजिस्ट्रेट शब्द फ्रांसीसी भाषा से निकला है। इसका अर्थ एक सिविल ऑफिसर से है।
जज
देश में जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा की जाती है। अगर आप जज बनना चाहते हैं। ऐसे में आपके पास लॉ की डिग्री का होना जरूरी है। जज का अधिकार क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर होता है। जज के पास यह अधिकार होता है कि वह किसी दोषी व्यक्ति को मौत की सजा दे सकता है। इन सब के अलावा जज ऐसे मामलों को संभालता है, जो काफी जटिल होते हैं।
मजिस्ट्रेट
वहीं अगर बात मजिस्ट्रेट की करें, तो इनकी नियुक्ति मजिस्ट्रेट और हाईकोर्ट द्वारा की जाती है। मजिस्ट्रेट का अधिकार क्षेत्र राज्य स्तर तक सीमित होता है। आपको इस बारे में पता होना चाहिए कि मजिस्ट्रेट के पास किसी दोषी व्यक्ति को मौत की सजा देने का अधिकार नहीं होता है। मजिस्ट्रेट का काम छोटे-मोटे मामलों को देखने का होता है।
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