Aaj Ka Mudda: मध्यप्रदेश में चुनाव का रंगमंच सजा हुआ है। इस मंच पर बगावत के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। कांग्रेस-बीजेपी दोनों के घर से बगावत का धुआं उठ रहा है।
इस धुएं के बीच बयानों के बम भी फेंके जा रहे हैं। बगावत को लेकर सियासी बयानबाजी कितनी जायज है ये भी बड़ा सवाल है। फिलहाल बगावत की चक्की में सियासत पिस रही है।
बढ़ने लगी बगावत की तपिश
वक्त चुनाव का है, सियासी पारा उफान पर है। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों तरफ बागी ताल ठोक रहे हैं। राजनीति की महाभारत में जीतकर राजगद्दी पाने की लालसा में नेता बगावत का झंडा बुलंद कर रहे हैं। शायद ये बगावत का ही नतीजा था कि कांग्रेस को टिकट बदलने पड़े।
बीजेपी भी बगावत का दबाव महसूस कर रही है। विद्रोह की आग की तपिश हर सियासी दल के घर को झुलसा रही है। लेकिन, अपनी आग से ज्यादा दूसरे की जलन देखने की ख्वाहिश में बगावत की आग में बयानों का बारूद फेंका जा रहा है।
शिवराज सिंह चौहान का बयान
इसी बीच शिवराज ने भी अपना बयान देते हुए कहा, “काँग्रेस में जो चक्कियाँ चल रही हैं अभी। कमलनाथ जी कहते हैं कि मेरी चक्की बहुत बारीक पीसती है, लेकिन इस बार दिग्विजय सिंह की चक्की ने कमलनाथ जी को ही पीस दिया।
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कमलनाथ जी ने कहा कि कुर्ते फाड़ो दिग्विजय सिंह और जयवर्धन के लेकिन सब कमलनाथ समर्थकों के टिकट कटवा के, अब दिग्विजय सिंह कुर्ते फटवा रहे हैं कमलनाथ जी के। कुल मिला कर दिग्विजय की चक्की ने कमलनाथ जी को पीस दिया।”
रागिनी नायक, राष्ट्रीय प्रवक्ता, कांग्रेस का बयान
इसके साथ ही रागिनी नायक ने भी बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, “बीजेपी में जो रह रहे हैं, वो बड़े-बड़े नेता बयानबाजी कर रहे हैं कि हम तो 1% भी चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, हम तो जनता के आगे हाथ नहीं जोड़ सकते।
जिनकी टिकट कटी है 3 मंत्रीयों और 29 विधायकों की, वो ये बात भी कहीं न कहीं सिद्ध करते हैं बीजेपी के कार्यकाल में कोई ढंग से काम ही नहीं हुआ।
जनता की नब्ज नहीं टटोली गई, जन कल्याण का कोई काम नहीं हुआ। जिनके टिकट कटे हैं वो इतना विरोध कर रहे हैं कि कहीं कपड़े फट रहे हैं, कहीं बंदूक निकल रही है, कहीं केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव पर ही हमला हो रहा है। तो बीजेपी पूरी तरह से बोखलाई हुई है।”
सियासत का कड़वा सच
बगावत नए दौर की सियासत का कड़वा सच है। राजनीति में विद्रोह पहले भी होते थे। लेकिन, उनकी तासीर इतनी तल्ख नहीं होती थी। अब तो चुनावी मौसम में टिकट ना मिलते ही नेताजी आस्था को भरोसे की पुड़िया में लपेटकर पार्टी बदल लेते हैं।
कांग्रेस में जहां लोकतंत्र के नाम पर विद्रोह का बिगुल हमेशा मुखरता से बजता रहा है, वहीं बीजेपी में अनुशासन के नाम पर बगावत को काबू कर लिया जाता है। लेकिन, इस बार दोनों तरफ आग बराबर लगी दिखाई दे रही है।
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