Success Story Of Wagh Bakri Tea: देश का तीसरा सबसे बड़ा चाय ब्रांड ‘वाघ बकरी’ (Wagh Bakri Tea) अपने अनोखो नाम के लिए मशहूर है। पहली बार सुनने वाला हर शख्स यही सोचता है कि भला ये भी कोई नाम हुआ।
‘वाघ-बकरी’ के डायरेक्टर पराग देसाई की हाल में ही कुत्तों के हमले की वजह से मौत हो गई है और कंपनी का नाम एक बार फिर सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है।
कंपनी की नींव साल 1919 में रखी गई
बता दें, ‘वाघ-बकरी’ ब्रांड से मशहूर चाय कंपनी का असली नाम गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड है। आज इस कंपनी की देश के चाय बाजार में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी है। मूल रूप से गुजरात की इस कंपनी की नींव साल 1919 में नरेनदास देसाई ने रखी थी।
गुजरात में इस कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 70 फीसदी से भी ज्यादा है। 130 साल से चाय के कारोबार से जुड़ी इस कंपनी का सबसे ज्यादा फोकस क्वालिटी प्रोडक्ट पर रहता है।
कैसे और क्यों रखा वाघ-बकरी नाम
कंपनी के मालिक नरेनदास ने अंग्रेजों के जमाने में सामाजिक भेदभाव काफी देखा था। दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान उन्हें भी कई बार रंगभेद का सामना करना पड़ा था। अपनी इस पीड़ा को ही उन्होंने प्रोडक्ट के नाम के सहारे कम करने और समाज में भेदभाव को खत्म करने की धारणा के साथ ही यह ब्रांड बनाया था।
उनकी सोच थी कि चाय भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला प्रोडक्ट है। लिहाजा एक ऐसा नाम दिया जाए जिसमें अमीर-गरीब के बीच की खाई खत्म होती नजर आए। लिहाजा उन्होंने वाघ और बकरी का कॉन्सेप्ट दिया, जहां वाघ समाज के उच्च वर्ग को बकरी निम्न वर्ग को दर्शाता है।
इसका मतलब है कि इस प्रोडक्ट को समाज का उच्च और निम्न वर्ग एकसाथ बैठकर इस्तेमाल करता है। इसी संदेश के साथ प्रोडक्ट का नाम ‘वाघ-बकरी’ रखा।
6 दशक बाद शुरू की पैकिंग
नरेनदास देसाई जब भारत आए तो उन्होंने गुजरात चाय डिपो नाम से अपना बिजनेस शुरू किया और जल्द ही मशहूर भी हो गया। फिर साल 1925 में उन्होंने ‘वाघ’बकरी’ ब्रांड को लांच किया। हालांकि, इसके बाद भी उनकी कंपनी लंबे समय तक खुली और होल सेल चाय ही बेचती रही।
20 से ज्यादा राज्यों में अपनी पैठ बनाई
करीब 61 साल तक खुली चाय पीने के बाद कंपनी ने पैकेट बंद चाय पत्ती बेचनी शुरू की। इसके बाद 22 सितंबर 1980 में गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड की नींव रखी और आज इस ब्रांड ने 20 से ज्यादा राज्यों में अपनी पैठ बना ली है।
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