World’s Deepest Pit: पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है, जहां आए दिन परिवर्तन होते रहते हैं। यहां पर वायुमंडल,जलवायु के कारण यह सब बदलाव संभव हो पाते हैं। पृथ्वी की सतह पर क्या-क्या चीजें मौजूद है इनका पता लगाने के लिए समय-समय विभिन्न देशों कई प्रयोग किए हैं।
इन्हीं में रूस ने तो जमीन के अंदर कई किलोमीटर का कुंआ भी खोदा। रुस ने शोध की दृष्टि से यह गड्ढा खोदा था। आइए जानते हैं इसके पीछे रुस क्या हासिल करना चाहता था जानेंगे इस रिपोर्ट में।
इन उद्देश्य से खोदा गया था गड्ढा
बता दें कि इन गरहे गड्ढों के पीछे किसी देश का उद्देश खनन कार्य नहीं होता है। कई देश तो केवल इसलिए खुदाई करते हैं ताकि उन्हें पता चल सके कि जमीन गहराई में कौनसी चीजें मौजूद हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखे तो हमें पता चलता है कि पृथ्वी की ऊपरी सतह को पर्पटी कहते हैं।
इसकी औसत मौटाई करीब 5 से 10 किलोमीटर तक होती है। वहीं यह महाद्वीपों में इसकी मौटाई 25 से लेकर 100 किलोमीटर तक रहती है।
1970 के दशक में शुरु हुई थी खुदाई
बात 1970 के दशक की है जब शीत युद्ध अपने चरम पर था तभी रुस ने दुनिया का सबसे गहरा गड्ढा खोदने का काम किया था। इस रिकॉट को आज तक कोई भी देश तोड़ नहीं पाया है। शोध के लिए रुस के मरमंस्क इलाके में स्थित कोला प्रायद्वीप पर इस गड्ढे को खोदना काम शुरु किया गया था।
इसे दुनियाभर में सुपरडीप बोरहोल के नाम भी जाना जाता है। कहा जाता है कि सन् 1989 तक इस गड्ढे की खुदाई हुई थी। यह गड्ढा की गहराई करीब 12 किलोमीटर तक है।
180 डिग्री सेल्सिस तापमान पुहंच गया था
बाद में इस गड्ढे के बीच में एक चट्टान आ गई थी. और इसके साथ ही इस गड्ढे के अंदर का तापमान बहुत ही अधिक हो कर 180 डिग्री सेल्सिस तक पहुंच गया था जिससे खुदाई का कार्य मुश्किल हो गया था।
कोल बोरहोल को वैज्ञानिक दृष्टि से काफी अहम कदम माना जाता है। इसमें खुदाई में वैज्ञानिकों को पता चला कि साल किलोमीटर की गहराई के बाद भी ग्रेनाइट आग्नेय शैल बेसाल्ट में नहीं बदले थे और गहराई में चट्टानें टूटी हुईं थी और पानी से भी भरी पाई गई थीं।
वैज्ञानिकों को मिली थी ये जानंकारियां
दावा किया गया है कि इससे वैज्ञानिकों को काफी भूगर्भीय और भूकंपीय जानकारियां हासिल हुईं है। यह गहराई पृथ्वी की पर्पटी के 35 किलोमीटर की चौड़ाई का एक तिहाई थी जिसके बाद यह कार्य और कठिन होता चला गया और उसमें बाधाएं भी आईं। बताया जाता है कि इस पूरी परियोजना में करीब एक अरब डॉलर का खर्च आया था जो कि करीब 2500 डॉलर प्रतिफुट होता है।
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