Aaj Ka Mudda: जहां एक तरफ सीएम शिवराज कह रहे हैं, “ऐसा भइया नहीं मिलेगा”, तो वहीं दूसरी ओर कमलनाथ जनता से कह रहे हैं, “मैं पूछता हूँ जनता से, कौनसा पाप मैंने किया?”
वैसे तो नेताओं की कोशिश हमेशा पब्लिक से कनेक्ट रहने की होती है, लेकिन चुनाव आते ही इसका प्रतिशत बढ़ जाता है। जनता जनार्दन से भावनात्मक रिश्ता जोड़ने का सीधा फायदा वोटों के रूप में आता है और चुनाव तो है ही वोटों की लड़ाई।
चुनाव आते ही इमोशनल हो रहे नेता
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के पब्लिक कनेक्ट के उनके विरोधी भी मुरीद हैं। चुनाव लड़ने के सवाल पर भी मुख्यमंत्री का इमोशनल अंदाज देखने को मिला। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण में जनता से पूछा, “चुनाव लड़ूँ कि नहीं लड़ूँ?
वहीं दूसरी ओर कमलनाथ भी लगातार इमोशनल कनेक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी हर सभा में वो मतदाताओं से सच का साथ देने की भावनात्मक अपील करते हैं। कमलनाथ ने अपने भाषण में कहा, “कमलनाथ का साथ मत देना, काँग्रेस का साथ मत देना, पर सच्चाई का साथ जरूर देना।”
चुनाव में इमोशन का अपना महत्व
चुनावी महाभारत में उतर रहे और उतरने की ख्वाहिश रखने वाले तो इमोशनल अंदाज में सामने आ ही रहे हैं। चुनाव न लड़ने का एलान करने वाली यशोधरा राजे सिंधिया भी शिवपुरी में अपनी मां को याद करते हुए भावुक हो गईं।
मध्यप्रदेश 5 साल बाद एक बार फिर से चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। चुनाव की आहट होते ही राजनेताओं के बयान और बॉडी लैंग्वेज दोनों में बदलाव होना दिखने लगा है।
विकास, कनेक्ट और पब्लिक रिलेशन के साथ इमोशन भी खास महत्व रखता है, जो चुनाव का रुख बदलने का भी माद्दा रखता है। जैसे-जैसे चुनावी फिजा की रंगत बढ़ेगी, चुनाव में भावनाओं का ज्वार और ज्यादा देखने को मिलेगा।
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