कोटा। कोचिंग के केंद्र कोटा में छात्रों की आत्महत्या की घटनाएं न केवल नेताओं, संस्थानों, पुलिस और अभिभावकों सहित विभिन्न हितधारकों के लिए बहस का विषय बन गई हैं, बल्कि ये एक मनोवैज्ञानिक के पीएचडी शोध का विषय भी हैं।
400 से अधिक छात्रों की हुई ‘काउंसलिंग’
कोटा के सरकारी नर्सिंग कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख दिनेश शर्मा ने इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोचिंग लेने वाले 400 से अधिक छात्रों की ‘काउंसलिंग’ की।
उन्होंने छात्रों में तनाव के स्तर और उन्हें परेशान करने वाले विभिन्न मुद्दों पर अपनी पीएचडी करने का फैसला किया और जयपुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को अपने शोध विषय की जानकारी दी। उन्होंने पिछले महीने अपनी पीएचडी पूरी की और अपना शोध पत्र जिला प्रशासन को भी सौंपा।
घटनाओं से निपटने का प्रशासन कर रहा प्रयास
जिला प्रशासन छात्रों के आत्महत्या करने की घटनाओं से निपटने के प्रयास कर रहा है। कोटा में इस वर्ष अब तक कोचिंग संस्थानों के 23 छात्रों ने आत्महत्या की है, जो अब तक की सबसे अधिक संख्या है। पिछले साल 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी।
शर्मा ने कहा, ‘‘जब मैंने कोचिंग संस्थानों के छात्रों की काउंसलिंग की, तो मुझे एहसास हुआ कि इस विषय का गहराई से कभी अध्ययन नहीं किया गया। कई कदम उठाने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन वे केवल अस्थायी व्यवस्थाएं हैं जो स्पष्ट रूप से काम नहीं कर रहीं। मैंने इस पर शोध करना शुरू किया और महसूस किया कि कुछ पत्रों को छोड़कर इस विषय पर कोई प्रकाशित सामग्री नहीं है और इसलिए मैंने इस विषय पर पहली पीएचडी करने का फैसला किया।’’
शोधपत्र में दी तीन सिफारिश
मनोवैज्ञानिक ने कहा कि उन्होंने इन दुखद घटनाओं को रोकने के लिए अपने शोधपत्र में तीन महत्वपूर्ण सिफारिश की हैं, जिनमें कोचिंग के शुरुआती महीनों में रैंकिंग प्रणाली नहीं होनी की सिफारिश भी शामिल है।उन्होंने यह भी सिफारिश की कि कोचिंग संस्थानों को पूरे पाठ्यक्रम के लिए नहीं, बल्कि तिमाही आधार पर फीस लेनी चाहिए। शर्मा ने तीसरी सिफारिश की है कि छात्रों को उनके अंकों के अनुसार अलग-अलग बैच में नहीं बांटा जाना चाहिए।
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