Unique Temple: भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता की चर्चा विश्व भर में फैली हुई हैं। विभिन्न धर्मों के संगम की धरती भारत में एक से बढ़कर एक पुराने व भव्य कलात्मक मंदिर हैं, जिनकी सुंदरता देखने लायक है। हजारों साल पुराने इन मंदिरों की खूबसूरती व समृद्धि को देखकर आप भारत के विशाल इतिहास का अंदाजा लगा सकते हैं।
इन मंदिरों की नक्काशी में भारतीय संस्कृति, कला व सौंदर्य का अनूठा संगम है, जिन्हें देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। आइए जानते हैं एक ऐसा मंदिर है जहां राजा की चिता पर मंदिर बना है। जी हां बिहार के दरभंगा में चिता पर बना है मां श्यामा काली का मंदिर। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है और सभी मांगलिक कार्य भी संपन्न होते हैं। इतना ही नहीं मान्यता है कि इस मंदिर में मां श्यामा काली के दर्शन से सारी मुरादे पूरी हो जाती हैं।
मंदिर के गर्भगृह में मां काली की विशाल प्रतिमा के दाहिनी ओर महाकाल और बाईं ओर गणपति एवं बटुकभैरव देव की प्रतिमा स्थापित है। भक्तों को मां श्यामा के दर्शन से ही अदभुत सुख की प्राप्ति होती है। लेकिन इस मंदिर से जुड़े सबसे बड़े रहस्य ये हैं कि इस मंदिर में मां श्यामा की पूजा तांत्रिक और वैदिक दोनों ही रूपों में की जाती है। हम आपको बताएगें क्यों श्मशान भूमि पर विराजमान हैं मां काली और क्या है मां काली के श्यामा माई होने की कहानी।
आखिर किसकी चिता पर बना है यह मंदिर ?
श्यामा माई का यह मंदिर महाराजा रामेश्वर सिंह की चिता पर बनाया गया है, अजीब बात है कि इस मंदिर का निर्माण किसी व्यक्ति की चिता पर किया गया है। बता दें महाराजा रामेश्वर सिंह कि चिता पे बना है यह मंदिर दरभंगा राज परिवार के साधक राजाओं में से एक थे. देवी के प्रति उनकी साधना मशहूर है। यहां तक कि अब इस मंदिर को रामेश्वरी श्यामा माई के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर की निर्माण 1933 में महाराजा रामेश्वर सिंह के वंशज दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने की थी। मां श्यामा की आदमकद प्रतिमा भगवान शिव की छाती पर है। मा श्यामा के बगल में गणेश, बटुक भैरव व काल भैरव की प्रतिमाएं हैं।
आखिर कहा से लाई गई थी मां श्यामा काली का यह मूर्ति ?
इतिहासकारों का कहना है कि यह मूर्ति पेरिस से लाई गई थी। मां काली की यह मूर्ति चार भुजाओं वाली है। दाहिना हाथ हमेशा आने वाले शरणार्थियों को आशीर्वाद देता है। बता दें श्मशान भूमि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते है और यहां तक की विवाह के बाद एक साल तक श्मशान भूमि में जाने से भी लोग माना है। लेकिन श्यामा माई का ऐसा चमत्कार है कि नवविवाहित जोड़े विवाह के बाद इनसे आशीर्वाद लेने आते हैं। इतना ही नहीं मंदिर में विवाह संस्कार भी किए जाते।
विवाह के बाद पता चला पति पुरुष नहीं, जानें फिर क्या हुआ
इस मंदिर में मां काली की पूजा वैदिक और तांत्रिक दोनों विधियों से की जाती है। आमतौर पर हिंदू धर्म में शादी के 1साल बाद तक जोड़ा श्मशान भूमि में नहीं जाता है। लेकिन श्मशान भूमि में बने इस मंदिर में न केवल नवविवाहित आशीर्वाद लेने आते बल्कि इस मंदिर में शादियां भी सम्पन्न कराई जाती हैं।
जानकारों का कहना है कि श्यामा माई माता सीता का रूप हैं। इस बात की व्याख्या राजा रामेश्वर सिंह के सेवक रह चुके लालदास ने रामेश्वर चरित मिथिला रामायण में की है। यह वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण से ली गई है। इसमें बताया गया है कि रावण का वध होने के बाद माता-सीता ने भगवान राम से कहा कि जो भी सहत्रानंद का वध करेगा वही असली वीर होगा।
इस पर भगवान राम उसका वध करने निकल पड़े। युद्ध के दौरान सहस्रानंद का एक तीर भगवान राम को लग गया। इस पर माता सीता बेहद क्रोधित हुईं और सहस्त्रानंद का वध कर दिया। क्रोध से सीता माता का रंग काला पड़ गया। वध करने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो उन्हें रोकने के लिए भगवान शिव को स्वयं आना पड़ा। भगवान के सीने पर पैर पड़ते ही माता बहुत लज्जित हुईं और उनके मुख से जीह्वा बाहर आ गई। माता के इसी रूप की पूजा की जाती है और उन्हें यहां काली नहीं श्यामा नाम से पुकारा जाता है।
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