Aaj Ka Mudda: छत्तीसगढ़ राजनीति में इन दिनों ट्वीट वॉर छिड़ा हुआ है. इस वॉर में दोनों ही दल के नेता भाषा की मर्यदा भूल एक दूसरे पर कीचड़ उड़ेल रहे हैं. सबसे पहले कांग्रेस का ट्वीट जिसने भाषाई मर्यादा तोड़ी. वहीं दूसरी तस्वीर बीजेपी के ट्वीट की है, जो कांग्रेस को घेरने के लिए नैतिकता को तारतर कर रही है.
ये राजनीति की भाषा तो नहीं
प्रदेश की राजनीति में ये क्या चल क्या रहा है. कोई किसी को मुर्गा बोल है, कोई किसी को गधा. क्या राजनीति की यही भाषा है और शायद कुर्सी के लालच में क्या नैतिकता और क्या सम्मान. अरे सम्मान तो छोड़ो दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर ऑनलाइन कीचड़ उड़ेल रहें हैं.
वार-पलटवार की ये कैसी भाषा?
डॉक्टर साहब की “बरनोल” उठा लाए? अब रात कैसे कटेगी उनकी? 4 महीने रुको तुम सबके सब भाजपा कार्यालय की छत पर “मुर्ग़ा बनकर” कूँ-कूँ करके माफ़ी माँग रहे होगे. अभी तो जनता वो दिन भी देखना चाहती है जब तुम सब “गधों” पर बैठकर परेड करोगे. चुन चुनकर हिसाब होगा पापियों. ये तो रही कांग्रेस की भाषा. कांग्रेस ने ट्वीट किया तो बीजेपी भी पीछे नहीं रही.
अरे मूर्खों, बरनाल का उपयोग अभी नहीं करना है, अभी रखना है, आगे बबलु-बिट्टू समेत सभी कांग्रेसियों के काम आएगा. जब जनता ख़ौलते कड़ाही में डालेगी, हिसाब कांग्रेस का होना है. 4 महीने क्या कल चुनाव हो जाए तो बाहर हो जाओगे. फिर पप्पू के समान यात्रा करना. जनता जनार्दन तय कर चुकी है कि वे इस बार कांग्रेसी गधों को नहीं चुनेगी.
कुर्सी के लालच में लांघ रहे भाषा की मर्यादा
बरनॉल, मुर्गा, गधे जैसे शब्द क्या संवैधानिक हैं. क्या इन शब्दों का राजनीति में इस्तेमाल सही है. ये प्रश्न उठना लाजमी है. सूबे में इसी साल चुनाव है. वार-पलटवार जायज है. बयानबाजी से भी इनकार नहीं है.
लेकिन सवाल भाषा पर है क्या सत्ता के लालच में भाषाई मर्यादा को तिलांजलि देना जायज है. क्या सत्ता ही सबकुछ है. जिसके लिए भाषा और नैतिकता के गिरते स्तर को भी नजरअंदाज किया जा रहा है.
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