Aaj Ka Mudda: मध्यप्रदेश की सियासत में सिंधिया और दिग्विजय सिंह की पुरानी अदावत सेंटर में आ गई है. दिग्विजय सिंह के एक बयान ने ना सिर्फ 23 की लड़ाई को दिलचस्प बना दिया बल्कि इतिहास के पन्नों का जिक्र कर सियासत को भी गरमा दिया है.
ग्वालियर में फिर सियासत गरमाई
दिग्विजय सिंह के इस बयान से ये तो साफ है कि ग्वालियर-चंबल के चुनाव में मुकाबला कांग्रेस बनाम सिंधिया ही होगा और कांग्रेस इतिहास के पन्नों से नई सियासत गढ़ना चाहती है. ग्वालियर-चंबल किलों की सियासत के लिए जाना जाता है और इस बार ये इसलिए भी खास होता दिख रहा है. ग्वालियर और गुना की सीधी लड़ाई होने वाली है.
राघौगढ़ और सिंधिया राजघराने की अदावत पुरानी है लेकिन एक ही पार्टी में होने के चलते इलाकों को ना घेरने का आपसी समझौता था. अब क्योंकि सिंधिया बीजेपी में आ चुके हैं तो राजा महाराज पर सीधे हमले करते दिखाए दे रहे हैं.
’23’ की लड़ाई, 1857 पर आई !
कई मौकों पर दोनों नेता एक-दूसरे को घेरते नजर आए और प्रियंका के दौरे को लेकर जब दिग्गी डबरा पहुंचे. सन 1857 का जिक्र करते हुए ये कह गए कि तब किला ढहा था. अब किला बिखर जाएगा.
रियासत और अदावत की लड़ाई में प्रियंका का ग्वालियर दौरा और भी खास होगा क्योंकि उनके दौरे में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाना भी शामिल है. जिससे जाहिर है कि आजादी की लड़ाई और सिंधिया घराने की भूमिका को कांग्रेस 23 की लड़ाई में मुद्दा बनाएगी. दिग्विजय ग्वालियर के बैक-टू-बैक दौरे कर रहे हैं और प्रियंका के दौरे के साथ चुनावी बिसात भी बिछा रहे हैं.
पुरानी अदावत, नई सियासत
वहीं सिंधिंया भी लाडली बहना सम्मेलन के जरिए राघौगढ़ में गरजे थे. सिंधिया ने दिग्गी और जयवर्धन को जमकर निशाने पर लिया था. अब दिग्विजय का बयान आया तो बीजेपी ने एक सुर में कांग्रेस को घेरा. जाहिर है कि सिंधिया का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए बड़े घाव की तरह है.
जिससे सत्ता के साथ ही ग्वालियर-चंबल का मजबूत किला भी ढह गया. कांग्रेस किला बिखरने की बात तो कह रही है लेकिन उपचुनाव के नतीजे बताते हैं कि ग्वालियर चंबल में मिली बढ़त को दोबारा हासिल करना सबसे बड़ी चुनौती होगी.
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